किनुआ- बुन्देलखण्ड़ के अनुकूल एक न्यूट्रीडेन्स फसल
झाँसी : रानी लक्ष्मी बाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय में शनिवार को ‘अटल जय विज्ञान व्याख्यान’ का आयोजन वर्चुअल माध्यम द्वारा किया गया। इस व्याख्यानमाला के मुख्य वक्ता डाॅ. राकेश कुमार सिंह प्रोगाम लीडर, फसल सुधार, आईसीबीए दुबई रहे। उन्होंने सीमांत कृषि क्षेत्रों के लिये खाद्य एवं पोषण सुरक्षा हेतु पोषक तत्वों से भरपूर किनुआ फसल पर विचार रखे।
डाॅ. अनिल कुमार, निदेशक शिक्षा ने बताया कि हमारे विश्वविद्यालय ने व्याख्यानमाला 2018 से भारत रत्न अटल विहारी वाजपेयी की स्मृति में शुरू की थी। इसमें देश के कई जाने माने वैज्ञानिक एवं शिक्षाविद अपने व्याख्यान प्रस्तुत करते हैं। इसके अन्तर्गत 14 वां व्याख्यान था। इसे देश भर के वैज्ञानिकों, शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं ने वर्चुअल माध्यम से सुना।
डाॅ. सिंह ने बताया कि किनुआ सीमान्त कृषि क्षेत्रों के लिये एक अत्यन्त लाभकारी एवं उपयोगी फसल है। इसकी विशेषता है कि ये जलवायु परिवर्तन के प्रति उदासीन तथा पोषक तत्वों से भरपूर है। इसे लवणीय तथा कम पानी वाले क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर कैल्शियम, विटामिन तथा सुक्ष्म पोषण तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। अतः बुन्देलखण्ड क्षेत्र के लिये यह एक उपयोगी फसल के रुप में विकसित की जा सकती है। डाॅ. आरके सिंह ने इस फसल को लोकप्रिय बनाने के लिये विभिन्न उपायों का भी वर्णन किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डाॅ. अरविंद कुमार कुलपति, रानी लक्ष्मी बाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झाँसी ने किनुआ की खेती पर जोर देते हुए कहा कि यह फसल हमारे क्षेत्र के लिये अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है। कोरोना काल में हम सभी को पोषण की आवश्यकता है। अतः हमें इस प्रकार की फसलों की खेती पर जोर देना चाहिए। इस कार्यक्रम में डॉ अनिल कुमार, डॉ. एसएस सिंह, डॉ. एआर शर्मा, डॉ. एसके चतुर्वेदी, डॉ. एके पाण्डे, छात्र-छात्राओं के साथ-साथ देश भर के कई वैज्ञानिक एवं शिक्षक वर्चुअल माध्यम से उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में डाॅ. योगेश्वर सिंह, प्रो. सस्य विज्ञान द्वारा मुख्य वक्ता का संक्षिप्त जीवन परिचय प्रस्तुत किया गया। धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. शुभा त्रिवेदी, वैज्ञानिक, पादप रोग विज्ञान क्षरा ने प्रेषित किया गया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. बीजी लक्ष्मी सहायक अध्यापिका, वानिकी जथा तकनीकी ने किया तथा तकनीकी सहयोग डॉ तनुज मिश्रा एवं डॉ शैलेंद्र कुमार ने किया।