राज्य और समाज के सहयोग से सदा निरा बनेगी गवाईन नदी : डॉ० संजय सिंह

बांदा (अनिल शर्मा)। गवाईन नदी मध्य प्रदेश से निकलती है और ग्राम अच्छरौड़ बांदा में केन नदी से मिल जाती है। लेकिन ग्रीष्म में रितु आते ही नदी पूरी तरह सूख जाती है। इसको सदा निरा बनाने के लिए राज्य और समाज दोनों का आपसी सहयोग चाहिए। यह विचार जल जान जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक डॉ संजय सिंह ने व्यक्त किए। वह बुधवार को ग्राम लोहरा में स्वर्गीय सुनीता देवी शर्मा और पूर्व सांसद स्वर्गीय राम रतन शर्मा की स्मृति में आयोजित नदी पुनर जीवन संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मैंने कई दिनों तक इस नदी पर अनुसंधान किया है, जिसके वजह से मुझे इस नदी के बारे में विस्तार पूर्वक ज्ञान मिला है।

डॉ संजय सिंह ने कहा कि नदी एक विज्ञान है जैसे मनुष्य जीवित रहता है इसी प्रकार नदी भी जीवित होती है और मृत हो जाती है। केवल मात्र सफाई करने से मनरेगा द्वारा कार्य किए जाने से नदी सदा निरा नहीं बनेगी। इसके लिए ग्राम वासियों को और शासन व प्रशासन के लोगों को भी धैर्य पूर्वक कार्य करना होगा। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे पदम श्री उमाशंकर पांडे ने कहा की इस ग्राम में 100 लोग मेरा साथ दे, 100 डलिया एवं फावड़े की व्यवस्था करें। मैं उनके साथ दिव्यांग होते हुए भी पैदल नदी के उद्गम तक जाऊंगा और पूरी नदी मार्ग के यात्रा करने के पश्चात इस नदी को 100 दिवसीय श्रमदान के पश्चात इस नदी को पुनः जीवित करने हेतु संपूर्ण प्रयत्न करूंगा।

उन्होंने कहा उन्होंने अपने ग्राम जखनी को राष्ट्र में एक मॉडल गांव के रूप में परिवर्तन किया है कि इस गांव में हर खेत में मेड और हर में पर पेड़ का सिद्धांत किसने ने लागू किया है उन्होंने कहा आपको जानकर आश्चर्य होगा की ग्राम में प्रतिवर्ष किस 25000 कुंतल बासमती चावल पैदा कर रहे हैं जिसकी वजह से किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरी है उनके द्वारा बताया गया कि उनके ग्राम में छोटा सा छोटा किसान भी प्रतिवर्ष दो लाख रुपए की आय कर रहा है।

गोष्टी के मुख्य अतिथि पूर्व मंत्री हरिओम उपाध्याय ने कहा की आपको स्वयं पर विश्वास करना पड़ेगा की नदी को हम अपने श्रम द्वारा सदा निरा बनाएंगे। सरकार सहयोग कर दे तो अच्छा है। इस गोष्ठी के अध्यक्ष मंडल के द्वितीय अध्यक्ष प्रख्यात समाजसेवी रामकृष्ण शुक्ला ने कहा कि पानी से सब होता है, बिन पानी सब सुन। पानी गए न ऊबरे मोती मानस चुन। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज पागल नहीं थे जो केन बनवेट थे, जो तालाब बनवेट थे उनमें पेड़ लगाते थे क्योंकि इससे पर्यावरण बनता है। मनुष्य के लालच ने इस सब का विनाश किया है इसलिए हमें फिर से नदी को सदा निरा बनाए रखने के लिए श्रमदान करना होगा।

 

जब हम श्रमदान करेंगे तब सरकार भी सहयोग के लिए आएगी। उन्होंने कहा पानी के प्रबंधन का बुंदेलखंड में सबसे अच्छा उदाहरण चरखारी है, जहां से तालाब एक दूसरे से आपस में जुड़े हुए हैं और उनके माध्यम से ऊंचाई पर बने हुए केले और नगर को पानी की सप्लाई होती थी। इस अवसर पर समाजसेवी के के गुप्ता अशोक त्रिपाठी जीतू , आनन्द सिन्हा, संजय मिश्रा लोक भारती के सदस्य अनिल शर्मा, प्रधान सुरेश रैकवार पूर्व प्रधान अंगद मिश्रा मदनपाल प्रकाश त्रिपाठी राम प्रसाद रैकवार रमाकांत त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

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