झाँसी : कृषक वैज्ञानिक परिचर्चा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन
झाँसी : रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय झाँसी किसानों की आय में वृद्धि के उद्देश्यों से कार्य कर रहा है। इस दिशा में भारत सरकार की विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग नई दिल्ली की वित्त पोषित परियोजना के अंतर्गत बुंदेलखंड क्षेत्र में स्वरोजगार सृजन हेतु औषधीय पौधों की खेती को प्रोत्साहित करने हेतु 26 मार्च को कुलपति डा. अरविंद कुमार के दिशा निर्देशन में एक दिवसीय कृषक वैज्ञानिक परिचर्चा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। उन्होंने स्थानीय किसानों, उत्पादकों और उद्यमियों को उनकी आय और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए वैकल्पिक स्रोत के रूप में इन उच्च मूल्य की नकदी फसलों की बड़े पैमाने पर खेती के लिए कौशल विकास हेतु ऐसे कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए आग्रह किया।
उन्होंने बताया कि कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बुंदेलखंड क्षेत्र के किसानों को अतिरिक्त फसल उत्पादन के लिए औषधीय फसलों की तकनीक का संवर्धन और हस्तांतरण करना है जो प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण से 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में एक अनूठा कदम है। निदेशक शोध डा. एआर शर्मा, अधिष्ठाता कृषि डा. एसके चतुर्वेदी, अधिष्ठाता उद्यानिकी एवं वानिकी डा. एके पांडे और निदेशक प्रसार शिक्षा डा. एसएस सिंह कार्यक्रम में उपस्थित रहे। किसानों के साथ कृषि समस्याओं पर चर्चा भी की गई।
डा. एआर शर्मा ने क्षेत्र के गरीब कृषक समुदायों के बीच कौशल और रुचि विकसित करने के लिए इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने के लिए आयोजक डा. मीनाक्षी आर्य, परियोजना समन्वयक और डा. अंशुमान सिंह, सह-समन्वयक के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने किसानों से आग्रह किया कि वे अपने कौशल को और बढ़ाने के लिए इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रमों का लाभ उठाएं ताकि वे कम लेकिन केंद्रित प्रयासों के साथ अधिक फसलों का उत्पादन कर सकें।
डॉ एके पांडे ने सुगंधित पौधों के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास गतिविधियों के लिए विश्वविद्यालय की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी बताया कि बुंदेलखंड क्षेत्र अपनी पहचान, क्षेत्र की औषधीय फसलों की जीआई टैगिंग (भौगोलिक पहचान) दर्ज कराने की क्षमता रखता है। डॉ. एस के चतुर्वेदी ने बेहतर आय सृजन के लिए औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती के महत्व पर प्रकाश डाला। दो मुख्य सत्रों में आयोजित कार्यक्रम में 65 से अधिक किसानों ने भाग लिया। उद्घाटन और तकनीकी सत्र के बाद स्थानीय सीमांत किसानों, अन्य उत्पादकों और युवा किसानों के साथ बातचीत की गयी।
इस अवसर पर किसानों ने वैज्ञानिकों के साथ बातचीत की और सुगंधित पौधों के प्रसंस्करण, खेती और विपणन के बारे में विभिन्न तकनीकों को सीखा। विषय विशेषज्ञ डॉ. आशीष भरलिया, डॉ. रंजीत पाल, डॉ. घनश्याम अबरोल, डॉ. सुशील सिंह ने औषधीय और सुगंधित फसलों की खेती, रोपण सामग्री का प्रचार, कटाई के बाद के भंडारण, संरक्षण पद्धति, मृदा स्वास्थ्य और किसानों की आय के बारे में बताया। उन्होंने किसानों से इनकी खेती के लिए कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गई सहायता का लाभ उठाने का अनुरोध किया। परियोजना समन्वयक डॉ मीनाक्षी आर्य ने सभी का आभार प्रकट किया।