एडवांस तकनीक ने ब्रेन ट्यूमर के इलाज में लाई क्रांति

झाँसी। हर साल 22 जुलाई को ग्लोबल कम्युनिटी एकसाथ मिलकर वर्ल्ड ब्रेन डे मनाती है। इस साल की थीम ‘ब्रेन हेल्थ और डिसएबिलिटी: लीव नो वन बिहाइंड’ है जिसका मकसद दिमाग की सेहत से जुड़े मसलों पर जोर और जो लोग दिव्यांग हैं उन सबको को इलाज देना है। ब्रेन की सेहत में सबसे बड़ी चुनौती ब्रेन ट्यूमर रहता है जिसका इंसान की सेहत पर बहुत गंभीर असर पड़ता है। इस मौके पर आर्टेमिस हॉस्पिटल गुरुग्राम में साइबरनाइफ के डायरेक्टर डॉक्टर आदित्य गुप्ता ने सर्जरी की इस एडवांस तकनीक और इलाज में इसके फायदे के बारे में बताया।

 

ब्रेन ट्यूमर मस्तिष्क या उसके आसपास के टिशू के भीतर कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि से होता है। ये टिशू या तो कैंसर (घातक) या नॉन-कैंसरस (सौम्य) हो सकते हैं। ब्रेन ट्यूमर उनकी लोकेशन, साइज और ग्रोथ के हिसाब से चुनौतियां खड़ी करते हैं। इसमें सिर दर्द, दौरे, मेमोरी प्रॉब्लम, बैलेंस इशू, और बिहेवरियल चेंज होते हैं। इसके अतिरिक्त, ब्रेन ट्यूमर को को भी शारीरिक और मेंटल हेल्थ को बिगाड़ सकता है।
ब्रेन ट्यूमर के दुष्प्रभाव किसी भी व्यक्ति के जीवन पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकता हैं। ट्यूमर कॉग्निटिव फंक्शन को खराब कर सकते हैं, मोबिलिटी को सीमित कर सकते हैं, और इमोशनल डिस्ट्रेस पैदा कर सकते हैं। इसके अलावा, ट्यूमर से ब्रेन टिशू पर जो प्रेशर पड़ता है उससे ब्रेन फंक्शन डैमेज हो सकते हैं। अगर इसका इलाज नहीं किया जाता है, तो ब्रेन ट्यूमर की वजह से गंभीर विकलांगता हो सकती है, जिससे किसी व्यक्ति की डेली एक्टिविटी करने की क्षमता पर असर पड़ता है और क्वालिटी ऑफ लाइफ भी बिगड़ती है।

 

ब्रेन ट्यूमर के लिए परंपरागत तौर पर ओपन सर्जरी प्राथमिक इलाज होता था। इसमें सर्जन खोपड़ी में कट लगाते हैं और ट्यूमर को बाहर निकालते हैं। हालांकि, ओपन सर्जरी बहुत मामलों में सफल रहती हैं लेकिन इसके कुछ रिस्क और चुनौतियां भी होती हैं। सर्जरी में कट लगाने की वजह से इंफेक्शन, ज्यादा ब्लीडिंग और हेल्दी ब्रेन टिशू को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। ओपन सर्जरी के बाद रिकवरी में ज्यादा वक्त लग सकता, और फिर से सबकुछ नॉर्मल करने के लिए रिहैबिलिटेशन की जरूरत पड़ सकती है। पिछले कुछ सालों में मेडिकल टेक्नोलॉजी में काफी तरक्की हुई है जिससे ब्रेन ट्यूमर के इलाज में क्रांति आई है। एन्डोस्कोपिक न्यूरोसर्जरी, नेविगेशन गाइडेड न्यूरोसर्जरी और नॉन इनवेसिव साइबरनाइफ रेडियोसर्जरी होती है।

 

एंडोस्कोपिक ब्रेन ट्यूमर सर्जरी एक मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया है जिसमें डॉक्टर ब्रेन के अंदर तक जाकर ट्यूमर को तलाश लेते हैं और नाक के जरिए उसे बाहर निकाल देते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान, एक पतली ट्यूबिंग खोपड़ी या किसी अन्य जगह कट लगाकर वीडियो प्राप्त किया जाता है। ये ट्यूब एंडोस्कोप कहलाती है जिसमें एक छोटा कैमरा भी लगा होता है और इसकी मदद से न्यूरो सर्जन दिमाग के अंदर के प्रभावित हिस्से को अच्छे से देख पाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया का एकमात्र मकसद ये होता है कि दिमाग के हेल्दी हिस्से को बिना नुकसान पहुंचाए ट्यूमर को बाहर निकाल दिया जाए। इस तकनीक ने इलाज में क्रांति ला दी है क्योंकि इससे डॉक्टर को दिमाग के अंदर से एकदम साफ तस्वीरें मिलती हैं।

 

पिट्यूटरी ग्लैंड ट्यूमर, स्कल बोन ट्यूमर और जो ट्यूमर ज्यादा अंदर होते हैं उनके मामले में सर्जन एंडोस्कोपिक सर्जरी का कम ही इस्तेमाल करते है। एंडोस्कोपी के बाद भी अगर दिमाग में ट्यूमर का कोई हिस्सा बच जाता है तो रोबोटिक साइबरनाइफ रेडिएशन थेरेपी से उसे ठीक कर दिया जाता है जिसके रिजल्ट बेहतर आते हैं। नेविगेशन गाइडेड सर्जरी एक इमेज तकनीक पर आधारित सर्जरी है जिसका इस्तेमाल स्पाइनल सर्जरी में मरीज के शरीर की संरचना को स्कैन करने के लिए किया जाता है और ये नेविगेशन सिस्टम कैमरा से किया जाता है।

 

इसमें स्पेशलाइज्ड सॉफ्टवेयर मरीज की रीढ़ की 3-डी इमेज देता है जिससे सर्जन को ऑपरेशन करने में मदद मिलती है। जैसे किसी लोकेशन को नेविगेट करने के लिए जीपीएस का इस्तेमाल किया जाता है उसी तरह 3-डी इमेज गाइडेड सर्जरी से न्यूरोसर्जरी में काफी मदद मिलती है। नॉन इनवेसिव साइबरनाइफ रेडियोसर्जरी- साइबरनाइफ सिस्टम एक नॉन इनवेसिव रोबोटिक रेडियोसर्जरी सिस्टम है जो परंपरागत सर्जरी का एक अच्छा विकल्प है। साइबरनाइफ में एडवांस रोबोटिक्स, इमेज गाइडेंस और कम्प्यूटराइज्ड डोज डिलीवरी है जिसमें बहुत ही सटीक तरह से हाई-डोज रेडिएशन की मदद से ट्यूमर को डैमेज किया जाता है। इसमें आसपास मौजूद स्वस्थ टिशू को नुकसान भी कम होता है।

 

परंपरागत सर्जरी की तुलना में साइबरनाइफ इलाज के हैं कई फायदे

नॉन-इनवेसिवनेस: साइबरनाइफ सर्जरी में कट लगाने या एनेस्थीसिया की जरूरत नहीं होती जिसके चलते ओपन सर्जरी की तुलना में इससे रिस्क काफी कम हो जाते हैं। एक्यूरेसी : साइबरनाइफ सिस्टम में ट्यूमर की पोजीशन को रियल टाइम में ट्रैक किया जाता है और रेडिएशन की किरणों को जरूरत के हिसाब से एडजस्ट कर लिया जाता है. टारगेट एकदम सटीक होने के चलते दिमाग के स्वस्थ टिशू को कम से कम नुकसान पहुंचता है जिससे लाइफ बेहतर होती है।

जल्दी रिकवरी: साइबरनाइफ इलाज में मरीज को ज्यादा दिक्कत नहीं होती और कुछ दिन में ही सामान्य गतिविधियां करने लग जाते हैं। जबकि ओपन सर्जरी की बात की जाए उसमें रिकवरी टाइम ज्यादा होता है।
वर्सेटाइल: साइबरनाइफ सिस्टम से हल्के और घातक दोनों तरह के ब्रेन ट्यूमर का इलाज किया जा सकता है। साथ ही शरीर के अन्य हिस्सों के ट्यूमर का भी इससे इलाज किया जा सकता है। इसकी ये क्षमता ही इसे कैंसर के इलाज में काफी उपयोगी बनाती है।

 

वर्ल्ड ब्रेन डे के मौके पर लोगों को ब्रेन की हेल्थ और दिव्यांगता के बारे में जागरूक करना काफी जरूरी है ताकि कोई भी व्यक्ति इलाज के बिना न रह पाए। ब्रेन ट्यूमर से व्यक्ति की सेहत पर बहुत ही गंभीर असर पड़ता है। हालांकि, मेडिकल तकनीक में साइबरनाइफ सिस्टम जैसे एडवांसमेंट होने से मरीजों के लिए उम्मीद की नई किरण आई है। ब्रेन ट्यूमर के मामले में साइबरनाइफ तकनीक नॉन इनवेसिव और एकदम सटीक इलाज मुहैया कराती है जिसके रिजल्ट बेहतर आते हैं, रिकवरी टाइम कम होता है और दिमाग के स्वस्थ टिशू को कम से कम नुकसान पहुंचता है। आइए हम एक ऐसे भविष्य के लिए प्रयास करें जहां हर व्यक्ति विकलांगता की परवाह किए बिना, एडवांस तकनीक वाला इलाज पा सके और अपने ब्रेन की हेल्थ को सुधार सके।

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