अदाणी की वापसी

झांसी। अंतर्राष्ट्रीय निवेशक GQG ने 2 मार्च को अदाणी समूह के स्वामित्व बाली चार कम्पनियों – अड़ानी इंटरप्राईजेज, अड़ानी पोर्ट एंड सेज, अड़ानी ट्रांसमिशन और अड़ानी ग्रीन एनर्जी में 1.87 बिलियन डॉलर (15,446 करोड़ रुपये) का निवेश कर अड़ानी समूह को संजीवनी प्रदान कर दी है।

इस वर्ष की शुरुआत से ही अड़ानी समूह, भारत में राजनैतिक सत्ता की लड़ाई के बीच फुटबॉल बनी हुई थी। 24 जनवरी 2023 को हिंडनबर्ग रिपोर्ट के प्रकाशित होने और भारत में लोकसभा की विपक्षी पार्टियों के दुष्प्रचार के कारण कम्पनी को 140 बिलियन डॉलर के बाज़ार पूँजीकरण का नुक़सान हुआ था। पिछले पाँच दिनों से अड़ानी के शेयरों की क़ीमत एक बार फिर बढ़ने लगी थी। ब्रिटिश कम्पनी ने मौक़े का फ़ायदा उठाकर करोड़ों डॉलर की बचत कर ली। 25 जनवरी को 3,388.95 रुपये की क़ीमत पर अड़ानी के मात्र 3.69 मिलियन शेयर ही बिक्री के लिए उपलब्ध थे जबकि 2 मार्च को GQG ने इन्हीं शेयरों को केवल 1410.68 रुपये की क़ीमत पर ख़रीदकर लगभग आधे पैसे बचा लिए।

अड़ानी के बहाने छिड़ी इस लड़ाई का ख़ामियाज़ा उन निराशावादी निवेशकों को हुआ जिन्हें भारत सरकार पर भरोसा नहीं था। मंदड़ियों ने विपक्षी पार्टियों के दुष्प्रचार को सही मानकर अड़ानी के जिन दुधारू-शेयरों को घाटा खा कर बेंच दिया उन्हीं शेयरों को ब्रिटिश कम्पनी ने आँधी क़ीमत पर वापस ख़रीद लिया। फ़िलहाल भारतीय अर्थव्यवस्था को इससे बहुत लाभ हुआ क्योंकि इस निवेश से भारत को कुल 12,771 करोड़ रुपये का शुद्ध विदेशी निवेश प्राप्त हुआ।

अर्थिक संकट का कारण बैंकों का डूबना या कम्पनी का भागना नहीं होता है, यह “जंगल की आग” या “आसमान के गिरने” जैसी किसी अफ़वाह के कारण होता है। 2022 में अर्थशास्त्र के नोबेल का पुरस्कार फ़िलिप एच डायवबिंग और डग्लस डायमंड को इसी विश्लेषण के लिए मिला कि “आर्थिक संकट प्रायः अफ़वाह के कारण, जनता के एक साथ नगदी के लिए दौड़ने के कारण, तरलता की कमी से पैदा होता है”। विपक्षियों के दुष्प्रचार के कारण एक समय भारत की अर्थव्यवस्था के भी डूबने का ख़तरा पैदा हो गया था. अड़ानी के देखा देखी अन्य शेयरों की क़ीमतों में भी घोटाले की आशंका से नीचे गिरने लगी, भारत के शेयर मार्केट का बाज़ार पूँजीकरण ब्रिटेन से पीछे चला गया था। पाकिस्तान और श्रीलंका में पहले से वित्तीय आपातकाल जैसी स्थिति चल रही थी। विपक्षी पार्टियों की चाल में फँसकर, सरकार यदि एक छोटी सी गलती कर बैठती तो भारत में वित्तीय संकट तय था।

बड़ी-बड़ी संस्थाओं ने सुनियोजित तरीक़े से भारत की अर्थव्यवस्था को डुबोने का प्रयास किया था। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के बहाने प्रधानमंत्री की कार्यकुशलता पर प्रश्न चिन्ह लगाया जा रहा था तो दूसरी ओर हिंडनबर्ग रिपोर्ट के ज़रिए भारत के शेयर मार्केट में शेयरों की क़ीमत को फ़र्ज़ी बताया जा रहा था। तीसरे मोर्चे पर भारत और चीन की सीमा पर तनाव होने का वहम फैलाते हुए विपक्षी दलों द्वारा भारत सरकार को चीन के खिलाफ युद्ध छेड़ने का दबाव बनाया जा रहा था।

पश्चिमी देश और अमेरिका को भारत की यह बात शूल की तरह चुभ रही है कि वह यूक्रेन और रूस के युद्ध में तटस्थ क्यों है ? भारत, तेल के अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में क़ीमतों के मोलभाव का लाभ क्यों उठा रहा है ? पश्चिमी देशों द्वारा कूटनीतिक दबाव बनाने में असफल होने के पश्चात उन्होंने देश की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप की कोशिश की जो अंततः बुरी तरह असफल हुई।

विपक्षी देशों के बहकावे में भारत में विपक्षी दलों के नेताओं ने सरकार पर चीन से उलझने और साऊदी अरब तथा ईरान इत्यादि मुस्लिम ब्रदरहुड से तेल की ख़रीद करने के लिए दबाव बनाया। भारत में एक मज़बूत सरकार और कमजोर विपक्ष के चलते फ़िलहाल पश्चिमी देशों की चाल कामयाब होती नहीं दिखती है।

द्वारा-: डॉक्टर अतुल गोयल

सहायक आचार्य (अर्थशास्त्र)

बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी

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