बुंदेलखण्ड का पौराणिक व अध्यात्मिक परिचय

अजय शंकर तिवारी

बुंदेलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी (उत्तर प्रदेश)

झांसी। बुंदेलखण्ड भारत का पौराणिक व ऐतिहासिक क्षेत्र है। जिसे मध्य भारत का धड़कन भी कहा जाता है, भौगोलिक रूप से बुंदेलखण्ड का क्षेत्रफल लगभग सत्तर हजार वर्ग किमी है। दक्षिणी उत्तर प्रदेश के सात जिलों सहित वर्तमान में इसकी स्थलीय सीमा भगवान कामतानाथ की धरती चित्रकूट से लेकर आल्हा-ऊदल की वीर गाथाओं की साक्षी रही वीर भूमि महोबा व बाँदा, महाभारत कालीन विराटनगर जो वर्तमान में राठ नगर जिला हमीरपुर उत्तरप्रदेश के नाम से जाना जाता है और उस काल में विराटनगर की राजधानी हुआ करती थी।

 

यहाँ चौपेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव का भव्य शिवलिंग स्थापित है, युधिष्ठर समेत पाँचों पाण्डवों ने एक वर्ष तक अज्ञातवास यहीं बिताया था।, महर्षि वेद व्यास की नगरी जालौन, दशावतार मंदिर ललितपुर तथा प्रथम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की अग्रणी वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की धरती झाँसी है, तो वहीं उत्तरी मध्य प्रदेश के लगभग दस जिले जिसमें द्वापर युग में वनवास के दौरान पांडवो का आश्रय रहे पन्ना, प्राकृतिक रूप से समुद्री जीवन का प्रयाय सागर, बुंदेलखण्ड के महाराज छत्रसाल की राजधानी छतरपुर, स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे की बलिदान भूमि शिवपुरी, जागेश्वरनाथ मंदिर दमोह, श्रीरामराजा सरकार की पावन नगरी ओरछा (टीकमगढ़ व निवाड़ी), सिद्धपीठ माँ पीतांबरा की नगरी दतिया, महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण के प्रतिद्वंदी शिशुपाल की राजधानी चंदेरी, सूर्य मंदिर से प्रसिद्ध ग्वालियर तथा माँ शारदा पीठ सतना से जाना जाता है।

सम्पूर्ण बुंदेलखण्ड में चंदेला राजवंश के राजाओं के पश्चात बुंदेला क्षत्रियों का इस क्षेत्र पर प्रभुत्व रहा, जिनके कारण से इसे बुंदेलखण्ड के नाम से जाना जाता है। आठवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के बीच बुंदेलखंड में चंदेल वंश का साम्राज्य रहा। जिसके संस्थापक नानुका थे, उन्होंने अपनी पहली राजधानी खजुराहो को बनाया जो बाद में जाकर महोत्सव नगर महोबा हो गई थी। वास्तुकला, मूर्तिकला उस शताब्दी में उत्कर्ष पर थी, जिसका जीता जागता प्रमाण खजुराहो मंदिरों का समूह है, जिसे चंदेल वंश में महान शासक यशोवर्मन ने अपने शासनकल में बनवाया था। यह समय बुंदेलखंड के शांति और समृद्धि के काल के रूप में भी जाना जाता है।

 

चंदेल वंश के आखिरी शासक परमर्दिदेव जी थे, जिनके सेनापति आल्हा-ऊदल थे, जिनके जीवन पर आधारित लोक कवि जगनिक द्वारा लिखित वीर रस प्रधान गाथागीत बुंदेलखण्ड में आल्हा खण्ड काव्य के रूप में काफ़ी चर्चित है। अपने शासन के अंतिम दिनों में राजा परमर्दिदेव ने दिल्ली के सुल्तान क़ुतुबद्दीन ऐबक की अधीनता स्वीकार कर ली और चंदेल वंश के साम्राज्य का अंत हो गया।

चंदेल वंश के पतन के पश्चात बुंदेलखण्ड में बुंदेला वंश की स्थापना हुई जिसके संस्थापक रूद्र प्रताप सिंह बुंदेला थे। बुंदेला वंश के पहले शासक के रूप में इनके पास गढ़कुण्डार में एक किला था। उस समय की राजनितिक स्थिति की अस्थिरता देखते हुए महाराज रूद्र प्रताप सिंह बुंदेला बेतवा नदी के तट पर ओरछा चले गए और उसे अपनी नई राजधानी बनाई। उनके मृत्यु के बाद इनके बड़े पुत्र भारतिचंद को उनका उत्तराधिकारी बनाया गया मगर कुछ समय बाद उनका भी स्वर्गवास हो गया और उनका कोई उत्तराधिकारी भी नही था, इस स्थिति में भारतिचंद के छोटे भाई मधुकर शाह को उनका उत्तराधिकारी बनाया गया जो भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम कुंवरी गणेश था, जो प्रभु श्रीराम की भक्त थी।

 

ऐतिहासिक तथ्य बताते है की राजा मधुकर शाह की पत्नी कुंवरी गणेश ही प्रभु रामलला को ओरछा लाई थी। जो वर्तमान में श्रीरामराजा सरकार ओरछा धाम के नाम से जाना जाता है जो छोटी अयोध्या भी कही जाती है। इस प्रकार बुंदेलखण्ड क्षेत्र अनगिनत ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों और मान्यताओं का क्षेत्र है, जो इसकी प्राचीनता को प्रमाणित करते हैं।

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