विमोचित हुई काबुली चना की नई प्रजाति आरएलबी
दक्षिण भारत के प्रदेशों के लिए विमोचित
झाँसी : रानी लक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय झाँसी के कुलपति डॉ. अरविन्द कुमार के निर्देशन में वैज्ञानिकों ने काबुली चना की उन्नत प्रजाति आरएलबी चना काबुली-1 को विकसित करने में सफलता पाई है। इसको विकसित करने में डॉ. अंशुमान सिंह, डॉ. मीनाक्षी आर्य एवं डॉ. सुशील कुमार चतुर्वेदी का योगदान रहा है। यह प्रजाति भारत सरकार द्वारा वर्ष 2021 में दक्षिण भारत के प्रमुख प्रदेशों जैसे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, उड़ीसा के लिए विमोचित की गई है।
काबुली चना की यह प्रजाति अक्टूबर के दूसरे पखवारे में बोने के लिए उपयुक्त है। इसके बीज मध्यम मोटे, आकर्षक क्रीमी (सफेद) रंग के होते हैं। बीज का भार 36.0 ग्राम प्रति 100 दाने दर्ज किया है। बड़े दाने की इस काबुली चना की औसत उपज 16 कुंतल प्रति हेक्टेयर है तथा लगभग 100 से 110 दिन में फसल पककर तैयार हो जाती है। फसल की यह प्रजाति उकठा एवं शुष्क मूल सडन के लिए अवरोधी है। स्तम्भ मूल संधि विगलन (कालर रॉट) एवं बौनापन बीमारी के लिए सह्य एवं शीघ्र परिपक्व होने के कारण फली भेदक कीट से इसमें कम हानि होती है।
इसकी बुवाई अच्छी भुरभुरी बलुई दोमट मिट्टी वाले खेत में करनी चाहिए। खेत में उर्वरक के लिए 20 किग्रा. नत्रजन, 40 किग्रा. फॉस्फोरस, 20 किग्रा. पोटाश एवं 20 किग्रा. गंधक का प्रयोग प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए।
इसकी बीज दर 75 से 80 किग्रा. प्रति हेक्टेयर रखने से भरपूर उपज मिलती है। इसमें बीज जनित रोग से बचाव के लिए थीरम 2 ग्राम एवं कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीज को बोने से पूर्व शोधित किया जाता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथलीन 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा अलाक्लोर 3-4 लीटर प्रति हेक्टेयर बुवाई के बाद (तीन दिन के अंदर) छिड़काव करें।
काबुली चना अगले वर्ष से बुन्देलखण्ड के किसानों की बढ़ाएगा आय
बुंदेलखंड क्षेत्र के किसानों को अगले वर्ष से इस प्रजाति का बीज उपलब्ध कराया जायेगा। इससे क्षेत्र में काबुली चना का उत्पादन बढ़ेगा। साथ ही किसानों की आय बढ़ाने में सहायक होगा।