अपने पिता की आज्ञा मानना पुत्र का परम कर्तव्य : स्वामी ज्योतिर्मयानंद
श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन सुनाई गई कपिलोपाख्यान समेत विदुर,ध्रुव व सती चरित्र की कथा
झांसी। अखंड परमधाम सेवा समिति के तत्वावधान में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस महामंडलेश्वर स्वामी ज्योतिर्मयानंद ने श्रीमद् भागवत कथा में विदुर चरित्र से लेकर कपिलोपाख्यान, सती चरित्र व ध्रुव चरित्र की कथा को गूढ़ता के साथ सुनाया। उन्होंने ब्रम्हा जी की आज्ञा पालन करने वाले महर्षि कर्दम की कथा सुनाते हुए कहा कि पिता की आज्ञा मानना पुत्र का परम कर्तव्य होता है। धन्य हैं वे पुत्र जो पिता की आज्ञा मानते हैं और ऐसे माता पिता भी धन्य हैं जिन्हें ईश्वर की कृपा स्वरूप आज्ञाकारी पुत्र प्राप्त होते हैं। कथा का श्रवण कर श्रद्धालु भावविभोर हो उठे।
कथा व्यास महामंडलेश्वर स्वामी ज्योतिर्मयानंद ने ऋषि कर्दम व देवहूति के विवाह की कथा सुनाई। उनसे 9 बेटियों की उत्पत्ति का वर्णन किया। उसके बाद उनके घर में भगवान कपिल का प्राकट्य होना बताया। उन्होंने बताया कि किस तरह परमपिता ब्रम्हा जी ने आकर कर्दम की चिंता दूर की। उन्होंने बताया कि अपने पिता की सेवा करना पुत्र का सबसे बड़ा कर्तव्य है। उन्होंने आज की मैकाले शिक्षा की चर्चा करते हुए कहा कि इसी शिक्षा ने हमारी संस्कृति को कमजोर किया। बहुत कम माता पिता ऐसे हैं जिसके माता पिता की आज्ञा का पालन करते हैं। ये भी हमारे संस्कारो का परिणाम है। हम टीवी तो देखते रहे पर मंदिर के लिए हमने कभी उन्हें प्रेरित नहीं किया। आज 75 प्रतिशत गूगल पर गंदी तस्वीरों को खोजने का अध्ययन आया है। यदि ऐसा ही रहा तो पितृ पक्ष में पानी भी व्हाट्सएप पर मिलेगा। भजन संध्या भी रोज रोज मत करो। भागवत कथा में संकीर्तन का प्राविधान है। आज कथा के लिए लोगों को बुलाना पड़ता है पर कोई मनोरंजन कार्यक्रम हो भीड़ संभालना मुश्किल हो जाएगा। संसार का सुख रोज ही काम लगता है। ऐसा माता देवहूति ने कपिल भगवान से पूंछा। आध्यत्मिक योग ही मनुष्य की मुक्ति का परम साधन है। जिस सुख को मनुष्य सांसारिक साधनों में खोज रहे हैं वह वहां है ही नहीं।
उन्होंने कहा कि यहां रिश्ते भी जरूरत के साथ बनते बिगड़ते रहते हैं। सुख भी परिवर्तन शील है। समयानुसार बदलते रहते हैं। आशा का त्याग करोगे तो जीवन में सुख ही सुख है। आज वक्त नहीं है पर वक्त निकालना चाहिए। यदि कथा सुनोगे तो एक दिन भगवान को स्वयं खोज लोगे। जब महात्मा भगवान को खोज कर मौत के पार जा सकता है तो आप भी भगवान को खोज सकते हो। उन्होंने कहा कि ये दुनिया बड़ी दोरंगी है। उन्होंने मनु और सतरूपा के वंशावली का वर्णन भी किया। उन्होंने विदुर चरित्र से लेकर कपिलोपाख्यान, सती चरित्र व ध्रुव चरित्र की कथा को गूढ़ता के साथ सुनाया। उन्होंने दक्ष प्रजापति की पुत्री सती का भगवान शिव के साथ विवाह की कथा का भी रसास्वादन कराया। श्री स्वामी जी ने दक्ष के द्वारा भगवान शंकर का तिरस्कार व श्राप का वर्णन भी किया। लेकिन भगवान मुस्कराते रहे। उन्होंने कहा कि सहनशीलता भगवान शंकर से सीखें। दक्ष प्रजापति की कथा से यह संदेश मिलता है कि ससुर को अपने दामाद का अपमान नहीं करना चाहिए। और सती की कथा अपने पति की आज्ञा का अनुसरण करना सिखाती है।
इस अवसर पर इस अवसर पर आयोजन समिति के अध्यक्ष अनूप अग्रवाल, महामंत्री पुनीत अग्रवाल,श्रीमती ममता अग्रवाल,सुरेश गुप्ता, भरत बट्टा, डॉ राजकुमार व्यास, श्रीमती उमा व्यास,आरती सोनी,श्रीमती मधु गुप्ता,श्रीमती माधुरी-ओम प्रकाश शर्मा परीक्षित,रामनारायन शर्मा,श्रीमती इंदु अरोरा,अवधेश पाठक,अरुण अग्रवाल,विनोद बट्टा आदि ने उपस्थित रहे।