सभी त्योहारों में अक्षय तृतीया का है अपना अलग ही महत्व

भारतीय मानसून के भविष्य का निर्धारण दिवस है अक्षय तृतीया

त्रेता युग का शुभारम्भ व भगवान परशुराम का है प्राकट्य दिवस

झाँसी: सभी जानते हैं कि भारत को गाँवों का देश कहा जाता है। पर्वों के देश भारतवर्ष में यूँ तो हर दिन कोई न कोई तीज-त्यौहार बना रहता है, किन्तु अक्षय तृतीया पर्व का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है। इस दिन को न केवल त्रेता युग का शुभारम्भ, सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक भगवान परशुराम जी का प्राकट्य दिवस के रुप में मनाया जाता है। बल्कि इस दिन भारतीय मानसून के भविष्य का भी निर्धारण किया जाता है। इसलिए इस दिन को खेती के हिसाब से अति महत्वपूर्ण माना जाता है। वही ग्रामीण वर्ष के मानसून का निर्धारण इस दिन रखे जाने वाले करवों में चने या उसकी दाल को डालकर कर देते हैं। इसी दिन यह तय हो जाता है कि बरसात के चार महीनों में से किन महीनों में वर्षा ज्यादा या कम होगी और खेती की पैदावार कैसी होगी।

सतयुग और त्रेता से चली आ रही अक्षय तृतीया के महत्व को भारतीय संस्कृति में अलग स्थान दिया गया है। हालांकि नगरों में तो इसके महत्व को लोग उतना नहीं जानते हैं। परन्तु गांव में आज भी इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। अक्षय से आशय है कभी न क्षय होने वाला अर्थात आज के दिन जो भी पूण्य कार्य किया जाता है उसका कभी क्षय नहीं होता। आज ही के दिन नगरों में रहने वाले विकसित लोगों की नजर में जिन अनपढ़ ग्रामीणों को गंवार तक की संज्ञा दे दी जाती है। गाँव का वह अशिक्षित और व्यवहारिक ग्रामीण आज भी अपनी संस्कृति को संजोए हुए हैं। यही नहीं ग्रामीण आज भी वर्षा का गणित आज की पूजा के साथ ही जोड़कर देखता है।

ऐसे की जाती है पूजा

अक्षय तृतीया की पूजा गाँव के करीब हर घर में की जाती है। इसके लिए गाँवों में कुम्हार के यहां से मिट्टी के पांच छोटे घड़े (डबला) खरीदे जाते हैं। इन सभी में सुबह से ही पानी भरकर रखा जाता है। इनमें से चार घड़ों पर चन्दन से हिन्दी के महीने आषाढ़, सावन, भादों व क्वांर के नाम लिखे जाते हैं। जबकि एक घड़ा पूरे वर्ष का रखा जाता है। इन पानी से भरे हुए घड़ों में चने या उसकी दाल (देवल) डाले जाते हैं। इन घड़ों के ऊपर मौसमी फल आम या खरबूज आदि रखे जाते हैं। साथ ही जो भोजन पकवान बनाया जाता है, उसे भी रखा जाता है।

ऐसे लगाया जाता है मानसून के भविष्य का अनुमान

जैसा की हम सभी जानते हैं कि बरसात के लिए आषाढ़, सावन, भादों व क्वांर इन चार महीनों को माना जाता है। पूजा आदि के बाद घड़ों में डले हुए चने या उसकी दाल को निकालकर देखा जाता है। जिस घड़े के चने सबसे ज्यादा फूल जाते हैं। यह अनुमान लगाया लिया जाता है कि उसी माह में वर्षा सर्वाधिक होगी।

बेहतर उपज का अनुमान

कर्मकाण्डी विद्वान आचार्य पंडित भगवत नारायण शास्त्री बताते हैं कि ऐसी मान्यता है कि शुरु के दो माह आषाढ़ व सावन में होने वाली वर्षा मध्यम खेती का प्रतीक मानी जाती है। जबकि भादों व क्वांर में होने वाली बारिस को फसल के लिए उत्तम माना जाता है। इसी के आधार पर वर्ष में फसल का उत्पादन कैसा होगा यह तय हो जाता है। इसी अनुमान के साथ किसान खेती का आसरा देखता है।

हल चलाने वाले का किया जाता था सम्मान

एन्साइक्लोपीडिया ऑफ़ बुन्देलखण्ड के नाम से चर्चित एवं भाजपा के राज्यमंत्री हरगोविन्द कुशवाहा बताते हैं, कि भारतीय संस्कृति में अक्षय तृतीया सबसे समृद्ध पर्व माना जाता है। इसी दिन सृष्टि की शुरुआत मानी जाती है। खासतौर पर यह दिन गांव के लोगों के जीवन का फैसला करने वाला होता है। इस दिन गाँव में हल चलाने वाले का सम्मान किया जाता था।

हल व बैलों की भी पूजा होती थी। खेत का मालिक व हल चलाने वाले के साथ खेत पर जाता था। घर की लक्ष्मी कही जाने वाली खेत के मालिक की पत्नी खेत पर जाकर पूजा करती थी। साथ ही धरती मां से हल चलाने की अनुमति लेकर उस पर हल चलाने वाले को भी सम्मानित करती थी। खेत से मिट्टी,जरिया (बेरी का छोटा रुप) व छेवलिया के पत्ते लाकर घर के बाहर दरवाजे पर बने आलों में रखकर उनकी पूजा की जाती थी। हलवाहे को भोजन कराने का भी रिवाज है।

वट वृक्ष का पूजन कर मांगी जाती है सुख शांति

जल जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक व वल्र्ड वाॅटर काॅउसिल के सदस्य डा.संजय सिंह बताते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन गांव की बेटियां चने की दाल व गुड़ लेकर वट वृक्ष का पूजन करती हैं। साथ ही अपने व परिवार की सुख शांति की कामना करती हैं। सनातन धर्म में वट वृक्ष व पीपल के वृक्ष में समस्त देवता का वास बताया गया है। जबकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यही दो वृक्ष सर्वाधिक ऑक्सीजन भी प्रदान करते हैं।

ये भी हैं मान्यताएं

इसी दिन ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण हुआ, माँ अन्नपूर्णा का जन्म हुआ, कुबेर को खजाना मिला था, माँ गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। सूर्य भगवान ने पांडवों को अक्षय पात्र दिया। महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था। भगवान वेदव्यास जी ने महाकाव्य महाभारत की रचना, गणेश जी के साथ शुरू की थी। प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान के 13 महीने का कठिन उपवास का पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया था। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण धाम के कपाट खोले जाते हैं। बृंदावन धाम के बाँके बिहारी मंदिर में श्री कृष्ण चरण के दर्शन होते हैं। भगवान श्रीजगन्नाथ के सभी रथों को बनाना प्रारम्भ किया जाता है। आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की थी। अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है।

Alok Pachori (A.T.A)

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