गाँव की सरकार : कोई गाय को भी तो बता दो कि चुनाव आ गए हैं, अभी न मरे
सत्ता के खेल
झाँसी (कुलदीप त्रिपाठी) : लोग राजनीतिक रंगों में सराबोर हो गए हैं। होर्डिंग-बैनर-पोस्टर पर लाखों उड़ाए जा रहे हैं। सरकारी मशीनरी चुनाव करवाने की तैयारी में व्यस्त हो गई है।
गाँवों का कोई माई-बाप नहीं रह गया है। गर्मी ने भी तेजी से करवट ली है। लू के थपेड़े शुरू हो गए हैं। पानी का तो कहीं इस साल नामोनिशान है ही नहीं। इंसान तो घरों की शरण लेकर खुद को बचा लेगा लेकिन गाय कहाँ जायेगी?
गाय गौशाला में पड़ी सड़ रही है। भूख-प्यास से तड़प रही है। उसको कीड़े पड़ रहे हैं। कुत्तों के झुण्ड उनके नवजात बच्चों को रात के अँधेरे में घसीट ले जाकर नोंच-नोंच कर खा ले रहे हैं। मरी हुई गायों को रात के अँधेरे में कहीं दूर फिंकवा दिया जाता है ताकि कोई समस्या न खड़ी हो। लेकिन, प्रधान जी कह रहे हैं कि अब हम कहाँ कुछ रहे। नए प्रधान से करवा लेना।
योगी सरकार की बनाई गौशालाओं (गौ जेलों) के सामने से भावी प्रधान, भावी ब्लॉक प्रमुख, यशस्वी जिला पंचायत अध्यक्ष की सफारी-स्कार्पियो-बोलेरो-फॉर्चूनर धुल उड़ाती दिन रात निकल रही हैं। मगर, अभी किसी को वहां रुकने का समय नहीं है।
क्योंकि गाय वोट नहीं दे पाती। हाँ वोट दिलवाती है लेकिन अफ़सोस सिर्फ विधानसभा चुनाव में। काश वो पंचायत चुनाव में भी वोट दिलवा पाती तो पीने का पानी और भूसा जैसी छोटी चीज मिलना कौन सी बड़ी बात थी। प्रत्याशी तो इतने बड़े दिल के हैं कि शराब-मुर्गा-बकरा तक बंटवा रहे हैं।
हे गाय तुम बस किसी तरह से अगले साल के विधानसभा चुनाव तक जिन्दा बच जाओ। देखना फिर आएंगे गौसेवक-योगी सेवक-मोदी सेवक। वो तुम्हें ऐसे नहीं भूलेंगे। आखिर तुमने भी तो उन्हें सत्ता दिलाई है। बस कुछ दिनों की बात है सह लो थोड़े दुःख।
तुम्हारे कुछ कॉमरेड अगर चुनाव के इस यज्ञ की बलि चढ़ते हैं तो कौन सी बड़ी बात हो गई। सत्ता बलिदान मांगती है, तुम भी दो। फिर ऐसे अच्छे दिन आएंगे कि तुम्हारी आरती होगी, कोई बड़ा मंत्री-विधायक-अधिकारी तुम्हें चारा खिलाकर फोटो खिंचवायेगा, तिलक करेगा।
धिक्कार है उन लोगों पर जो अभी भी उन पापियों को वोट देने की सोचेंगे, जिन्होंने ये कुकर्म किये हैं।