मुक्तिचक्र जनकवि केदारनाथ अग्रवाल स्मृति सम्मान” का संक्षिप्त इतिहास और सम्मान समारोह

-: अनिल शर्मा

प्रगतिशील काव्य धारा में वृहत त्रयी के तीन शीर्षस्थ कवि हैं~ केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन तथा त्रिलोचन। केदारनाथ अग्रवाल का जन्म बाँदा जनपद के कमासिन गाँव में 01 अप्रैल 1911 को हुआ था। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई करके बाँदा लौटे और वकालत करने लगे।वेएक बार डीजीसी फोजदारी बने तो उनकी ईमानदारी औरमुकदमै उनकी मेहनत के चलते वे रिटायर मैंट तक उसी पद रहे ऐसा कम देखने को मिलता है।

कविता लिखने का शौक उन्होंनें बचपन में ही पाल लिया था। उनका रुझान कविता की तरफ बढ़ता चला गया। जब उनका कविता संग्रह “फूल नहीं, रंग बोलते हैं” प्रकाशित होकर आया, तो उस कविता-संग्रह ने साहित्य जगत में धूम मचा दी। उनका नाम बड़े कवियों में शामिल हो गया। इसी कविता-संग्रह में उनको अंतरराष्ट्रीय महत्व के “सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया और रूस घूमने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके बाद उनको बड़े महत्व के अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा जाता रहा।


कालांतर में अपने युग के सर्वश्रेष्ठ आलोचक डाॅ रामविलास शर्मा ने केदार नाथ अग्रवाल पर एक आलोचनात्मक पुस्तक लिख दी, तो कवि केदार का कद प्रगति शील कवियो मे शिखर पर पहुँच गया।
अब अपने गृह जनपद में भी उनकी ज्य फैली। इसी क्रम में उनके दो प्रथम शिष्य बने ~ कृष्ण मुरारी पहारिया और इकबाल बहादुर श्रीवास्तव उर्फ अजित पुष्कल। बाबा नागार्जुन ने अपने बाँदा आगमन पर इन दोनों शिष्यों का रचनात्मक अवदान और सुचिंतित धारा का लेखन देख सुनकर तथा पढ़कर केदार जी से कहा ~ “शिष्य तुम्हारे शब्द शिकारी / तरुण युगल इकबाल मुरारी॥”

बाबा नागार्जुन ने केदार जी पर भी एक लंबी कविता लिखकर उनके पूरे व्यक्तित्व एवं कृतित्व को उजागर कर दिया। उनकी लंबी कविता के कुछ अंश याद आ रहे हैं ~ ” केन कूल की काली मिट्टी, वह भी तुम हो/ कालिंजर की चौड़ी छाती, वह भी तुम हो/ कुपित कृषक की टेढ़ी भौंहे, वह भी तुम हो, / ग्राम वधू की दबी हुई कजरारी चितवन, वह भी तुम हो/ तुम्हे भला क्या पहचानेंगे बाँदा वाले •••••”
इन्ही दिनों केदार जी के पास स्थानीय साहित्यकारों और साहित्य प्रेमियों का जमावड़ा लगने लगा। उनके पास नियमित रूप से बैठकी करने वालों में कृष्ण मुरारी पहारिया, एहसान आवारा तथा दो प्रमुख युवा रचनाकार थे ~ गोपाल गोयल और जयकांत शर्मा। ये दोनों छै फीट लंबे कद के थे। इसलिए केदार जी इनको अपनी “दो सारसें” कहते थे। अपने अनेक कविता-संग्रहों में उन्होंने इन दोनों सारस का उल्लेख बार-बार किया है।

लगभग पाँच वर्ष पूर्व कैंसर की बीमारी से जयकांत शर्मा कालकवलित हो गए। सारसों का जोड़ा टूट गया। लेकिन गोपाल गोयल ने अकेले दम मोर्चा सँभाला। वे स्थानीय डीएवी कालेज में प्रवक्ता रहे। सेवानिवृत्त होते ही उन्होने दिल्ली से “मुक्तिचक्र” पत्रिका के प्रकाशन की शुरुआत की। ज्ञात रहे कि “मुक्तिचक्र” शीर्षक भी कभी केदार जी ने ही गोपाल गोयल को सुझाया था। शुरूआत में यह अखबार के रूप में छपता रहा। आर्थिक संकट के कारण प्रकाशन कभी नियमित नहीं रहा। वर्ष 2018 से “मुक्तिचक्र” को रंगीन मासिक पत्रिका के रूप प्रकाशन शुरू हुआ।

तभी गोपाल गोयल ने केदारनाथ अग्रवाल की शिष्य परंपरा के साथियों को एकत्र करके “मुक्तिचक्र जनकवि केदारनाथ स्मृति सम्मान” की स्थापना की। इस काम के सहयोगी बने~ युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार, वरिष्ठ कवि जवाहर लाल जलज, प्रद्युम्न कुमार सिंह, नारायन दास गुप्त, आनंद सिन्हा, अशोक त्रिपाठी जीतू, शक्तिकांत, अनिल शर्मा, दीनदयाल सोनी, रामऔतार साहू, कालीचरण सिंह आदि। इन सभी ने संकल्प लिया कि प्रतिवर्ष किसी एक बड़े कवि को इस सम्मान से बाँदा मे ही सम्मानित किया जाएगा। किसी भी व्यक्ति से कोई आर्थिक सहयोग या चंदा नहीं लेंगे। अपनी अपनी जेब के और मुक्तिचक्र के बलबूते ही आयोजन करेंगे।

वर्ष 2018 से शुरू यह सम्मान समारोह अब तक जारी है। उल्लेखनीय बात यह है कि इस आयोजन में सम्मानित होने वाले कवि और आयोजन में देश के दूर दराज इलाकों से शामिल होने वाले साहित्यकार अपने अपने खर्चे पर आते जाते हैं। स्थानीय स्तर पर आयोजकों की ओर से सिर्फ आवास और भोजन की व्यवस्था रहती है। सम्मानित होने वाले कवि को बहुत आकर्षक प्रशस्तिपत्र, अंगवस्त्र आदि से सम्मानित किया जाता है। इसी के साथ साथ सम्मानित होने वाले कवि पर एक आलोचनात्मक पुस्तक प्रकाशित करने की योजना है, जो इस वर्ष पूरी हो रही है।
अब तक के सम्मानित कवियों की यदि बात करें, तो वर्ष 2018 में डाॅ सुधीर सक्सेना को यह सम्मान मिला। वे वरिष्ठ कवि, लेखक, आलोचक तथा “दुनिया इन दिनों” पत्रिका के संपादक हैं।

इसी क्रम में वर्ष 2019 में झारखंड के आदिवासी इलाके के वरिष्ठ कवि शंभु बादल को यह सम्मान मिला। शंभु बादल के अनेक कविता-संग्रह आ चुके हैं। वे एक साहित्यिक पत्रिका “प्रसंग” का भी नियमित प्रकाशन कर रहे हैं। इसी क्रम में वर्ष 2020 में छत्तीसगढ़ राज्य के आदिवासी इलाके जगदलपुर (बस्तर ) के कवि विजय सिंह को यह सम्मान दिया गया। विजय सिंह के अनेक कविता-संग्रह आ चुके हैं। वे “सूत्र” नाम से एक पत्रिका भी निकालते हैं। इसके अतिरिक्त वे नाट्य कर्मी भी हैं।
वर्ष 2021 का यह सम्मान लखनऊ के वरिष्ठ कवि कौशल किशोर को मिला। उनके अनेक कविता-संग्रह हैं। वे साहित्य की एक पत्रिका “रेवांत” के संपादक हैं तथा सोशल एक्टिविस्ट भी हैं।

 

वर्ष 2022 का सम्मान एक ऐसे कवि को मिला, जो कवि होने के साथ-साथ राष्ट्रीय महत्व के रंगकर्मी, शिल्पी तथा कलाकार भी हैं। वे अर्थात कुँअर रवीन्द्र रायपुर से आते हैं। वर्ष 2023 का यह “मुक्तिचक्र केदारनाथ अग्रवाल सम्मान” बीकानेर राजस्थान के अति महत्वपूर्ण और वरिष्ठ कवि नवनीत पाण्डेय को प्रदान किया गया। वे हिन्दी और राजस्थानी भाषा में छोटी छोटी धारदार कविताएँ लिखते हैं। उन्होने केदार साहित्य का राजस्थानी में अनुवाद भी किया है। उनके अनेक कविता-संग्रह प्रकाशित हैं।
वर्ष 2024 का सम्मान भोपाल की वरिष्ठ कवियित्री प्रज्ञा रावत को प्रदान किया गया। उनके कविता-संग्रह साहित्य जगत में बहुत सराहे जा रहे हैं। वे प्रगतिशील लेखक संघ के आधार स्तंभ कवि भगवत रावत की बेटी हैं। उनका बेटा मल्हार फिल्म उद्योग में है, उसकी एक फिल्म उसी दिन रिलीज हुई, जिस दिन बाँदा में उसकी माँ को सम्मानित किया गया।

 

22 जून 2024 को बाँदा के केदार सम्मान में साहित्यकारों का जुटान ~ एक ऐतिहासिक घटना है। बाँदा ~ 22 जून ~ जनकवि केदारनाथ अग्रवाल के स्मृति दिवस पर बाँदा में आयोजित एक साहित्यिक कार्यक्रम में दो वरिष्ठ कवियों को “मुक्तिचक्र जनकवि केदारनाथ अग्रवाल स्मृति सम्मान” से सम्मानित किया गया। वर्ष 2024 का यह सम्मान भोपाल की वरिष्ठ कवयित्री एवं एक्टिविस्ट प्रज्ञा रावत को प्रदान किया गया। उल्लेखनीय है कि वे प्रगतिशील लेखक संघ के आधार स्तंभ माने जाने वाले क्रान्तिकारी साहित्यकार और अपने समय सर्वाधिक चर्चित एक्टिविस्ट स्मृतिशेष भगवत रावत की ज्येष्ठ पुत्री हैं। कविता और साहित्य सृजन उनको अपने पिता से विरासत में मिला है।

 

जबकि वर्ष 2023 का यह सम्मान बीकानेर राजस्थान के वरिष्ठ कवि, नाटककार, बालकवि व गीतकार नवनीत पाण्डेय को प्रदान किया गया। नवनीत पाण्डेय हिन्दी और राजस्थानी भाषा में समान रूप से साहित्य सृजन करते हैं। उन्होंने जनकवि केदारनाथ अग्रवाल की अनेक कविताओं का राजस्थानी में अनुवाद किया है। सम्मान के रूप में दोनों सम्मानित कवियों को सम्मान पत्र और स्मृति चिन्ह भेंट करके तथा अंग वस्त्र पहना कर और माल्यार्पण व पुष गुच्छ देकर सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह का आयोजन बाँदा के जैन धर्मशाला में “मुक्तिचक्र” पत्रिका और जनवादी लेखक मंच, बादा की ओर से संयुक्त रूप से किया गया। प्रथम सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि एवं गीतकार जवाहर लाल जलज ने की और संचालन किया “मुक्तिचक्र” पत्रिका के संपादक गोपाल गोयल ने।

 

बाँदा की जनवादी परम्परा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने वाले प्रखर आलोचक, उम्दा कवि व व्यंग्य में अपने ठेठ देशी अंदाज में साहित्य सृजन करने वाले प्रखर वक्ता उमाशंकर सिंह परमार ने बीज वक्तव्य दिया। यह द्विदिवसीय साहित्यिक कार्यक्रम / सम्मान समारोह प्रथम दिन चार सत्रो में संपन्न हुआ। पहला सत्र सम्मानित किए गए दो कवियों के सम्मान का था। इस सत्र के मुख्य अतिथि थे ~ बुंदेलखंड विश्वविद्यालय से संबद्ध जवाहर लाल नेहरू महाविद्यालय बाँदा के हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं रीडर डॉ रामगोपाल गुप्त। विशिष्ट अतिथि के रूप बाँदा बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष कामरेड रणवीर सिंह चौहान एडवोकेट। अध्यक्षता वरिष्ठ कवि जवाहर लाल जलज कर रहे थे।

 

दूसरे सत्र में सम्मानित कवियों ने कविता पाठ किया। इनके साथ बाँदा जनपद व जनपद के सुदूरवर्ती क्षेत्रों से आये हुए कवियों ने भी अपनी कविताएँ सुनाईं। सत्र की अध्यक्षता प्रो रामगोपाल गुप्त जी ने की तथा संचालन किया कवि दीन दयाल सोनी ने। एक दर्जन से अधिक कवियों ने अपने काव्यपाठ से वातावरण को रसमय बना दिया। इस सत्र में ही बाँदा जनपद के वरिष्ठ कवि एवं जनवादी लेखक मंच के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रामऔतार साहू जी के काव्य संग्रह ” फूल पत्थर तोड़ते हैं” का विमोचन भी किया गया।

 

इस अवसर पर फतेहपुर से आए कवि/ आलोचक प्रेम नंदन, राजकीय महिला महाविद्यालय की प्रोफेसर डाॅ सबीहा रहमानी, दिल्ली से आए वरिष्ठ पत्रकार मुकुंद, कवि एवं कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता और एक्टिविस्ट डाॅ रामचंद्र सरस, कम्युनिस्ट आंदोलन को धारदार बनाने वाले समाजवादी चिंतक, विचारक तथा एक्टिविस्ट साहित्य प्रेमी और डीसीडीएफ जैसी बड़ी सहकारी संस्था के अध्यक्ष रहे साथी सुधीर सिंह, बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष रणवीर सिंह चौहान एवं अशोक त्रिपाठी जीतू तथा आनंद सिन्हा को अंग वस्त्र और माल्यार्पण से सम्मानित किया। इन्होनें समारोह में अपने विचार भी व्यक्त किए।
● कार्यक्रम के तृतीय सत्र में बाँदा कचहरी परिसर में बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक त्रिपाठी जीतू जी के सौजन्य से स्थापित बाबू केदारनाथ अग्रवाल की प्रतिमा पर माल्यापर्ण किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता अशोक त्रिपाठी जीतू ने की। संचालन प्रज्ञा रावत के सुपुत्र मल्लहार ने की।

 

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि केदार बाबू के एकमात्र पुत्र अशोक अग्रवाल ने अपने पिता की स्मृति संजोने की कोई कोशिश नहीं की,उल्टे सभी परिजनों ने मिलकर बहुत चुपके से केदार जी पैतृक आवास रातोंरात बेच डाला। इस खबर ने बाँदा के केदार प्रमियों को गहरा आघात पहुँचाया। इस साजिश में केदार जी के ही एक तथाकथित एकाक्षी और कृतघ्न कवि का हाथ रहा। वही केदार जी का विपुल साहित्य रातोंरात ढो कर ले गया, जिसमें केदार जी की अनेक पांडुलिपियाँ भी थीं। कार्यक्रम के चतुर्थ समापन सत्र के अवसर पर जनकवि केदारनाथ अग्रवाल की प्रिय नदी केन के तट पर कवि गोष्ठी संपन्न हुई। इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि नवनीत पाण्डे ने की। इस अवसर पर तमाम कवियों एवं साहित्य प्रेमियों सहित राजीव गाँधी डीएवी महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ रामभरत सिंह तोमर की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

 

कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी करने वालों में
नगर पालिका परिषद बाँदा के पूर्व अध्यक्ष संजय गुप्ता, प्रो० बीडी प्रजापति, डॉ० रामचन्द्र सरस जिलाध्यक्ष भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी बाँदा, जनवादी लेखक मंच के सचिव प्रद्युम्न कुमार सिंह, कोषाध्यक्ष नारायन दास गुप्ता, जनवादी लेखक मंच के मीडिया प्रभारी कालीचरण सिंह, डॉ0 शिव प्रकाश सिंह, डॉ० सबीहा रहमानी (हंगामा), ठाकुर दास पंक्षी, चन्द्र प्रकाश व्यथित, मनोज कुमार मृदुल, संजय लश्करी, निखिल बुन्देली, मदन सिंह, पवन सिंह पटेल, मुकुन्द जी, राम औतार साहू, मूलचन्द्र कुशवाहा, अर्जुन सिंह चाँद तथा बाँदा के साहित्य जगत से जुड़े कवि-लेखक प्रमुख थे। सभी रचनाकारों और श्रोताओं ने अपनी-अपनी रचनाओं और भावनाओं से जनकवि केदारनाथ अग्रवाल जी के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला।

 

इस कार्यक्रम की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि जनकवि केदारनाथ के प्रथम कवि शिष्य स्मृतिशेष कृष्ण मुरारी पहारिया की 75 कविताओं की विलुप्त पांडुलिपि का मिलना। इसका एकमात्र श्रेय दिल्ली के पत्रकार मुकुन्द को है कि उन्होंने इसे दिल्ली में खोज निकाला और उपलब्ध कराया। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि पहारिया जी के जीते जी उनका एकमात्र कविता संग्रह,” यह कैसी दुर्धष चेतना “वरिष्ठ पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट भाई अनिल शर्मा एवं डा रेनू चन्द्र डा रमेश चन्द़ अमित सक्सेना ,अनिल सिंदूर के के गुप्ताऔर उरई के क ई संवेदन शीलसाथियो केप्रयासों से प्रकाशित कराया गयाथा। उस कविता संग्रह की अनुगूंज आज तक विद्यमान है।

 

कार्यक्रम के संयोजक एवं “मुक्तिचक्र” पत्रिका के संपादक गोपाल गोयल ने एक सुखद जानकारी यह दी कि कृष्ण मुरारी पहरिया की इन पिचहत्तर कविताओ के कविता-संग्रह का विमोचन वर्ष 2025 में “मुक्तिचक्र जनकवि केदारनाथ अग्रवाल स्मृति सम्मान के अवसर पर किया जायेगा। पहारिया जी की हस्तलिखित पांडुलिपि दिल्ली से आये पत्रकार मुकुन्द जी ने उपलब्ध करा ही दी है।
इसी क्रम में संपादक गोपाल गोयल और आलोचक उमाशंकर सिंह परमार ने घोषणा की है कि सम्मानित किए गये दोनों कवियों पर एक एक आलोचनात्मक पुस्तक इस वर्ष के अंत तक या विश्व पुस्तक मेला के समय तक प्रकाशित होकर अवश्य आ जाएगी।

 

अंत में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि जवाहर लाल जलज के अध्यक्षीय उद्बोधन के बाद “मुक्तिचक्र” पत्रिका सम्पादक एवं जनवादी लेखक मंच के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गोपाल गोयल ने आज सम्मानित किए गए कवियों सहित जिले के सुदूरवर्ती क्षेत्रों से आये हुए साहित्यकारों तथा विद्वतजनों का आभार प्रकट किया।
●● सम्मान समारोह के दूसरे दिन 23 जून को सबसे पहले जिला पंचायत परिसर में स्थापित “एकता पार्क” का अवलोकन किया गया। यहाँ पर जनकवि केदारनाथ अग्रवाल और मिर्जा गालिब की प्रतिमाएँ स्थापित हैं। इसके बाद अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह के गाँव बड़ोखर में समसामयिक सामाजिक, साहित्यिक / सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा आर्थिक परिस्थितियों पर गंभीर चिंतन और विचा विमर्श हुआ और कविता पाठ हुआ। जिसकी अध्यक्षता प्रेम सिंह ने की। संचालन उमाशंकर सिंह परमार ने किया। यह कविता पाठ व चर्चा पूरी तरह से प्रकृति एवं पर्यावरण के संरक्षण को समर्पित रही। इसके साथ भारतीय संस्कृति के पहलुओं तथा खेत-किसान के साथ साथ गाँव की परम्पराओं पर विस्तार से चर्चा हुई।

 

इस तरह भीषण गर्मी के बावजूद बाँदा में दो दिन साहित्य समाज जुटा और केदारनाथ अग्रवाल को याद करते हुए उनकी प्रगतिशील व संघर्षशील परंपरा को आगे बढ़ाने के अपने संकल्प को दोहराया।

 

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि केदार बाबू के एकमात्र पुत्र अशोक

अशोक अग्रवाल ने अपने पिता केदारनाथ अग्रवाल की स्मृतियों को भले ही मिटा दिया हो, लेकिन दूसरे अशोक अर्थात जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक त्रिपाठी जीतू ने कचहरी परिसर में केदारनाथ अग्रवाल की प्रतिमा स्थापित कराई। इस कार्य मे केदार बाबू के शिष्य जिला जज शक्तिकांत श्रीवास्तव का विशेष सहयोग उल्लेखनीय है। इस घटना में खास बात यह भी है कि अशोक जीतू के पिता श्री रामरतन शर्मा जनसंघ पार्टी के सांसद थे, लेकिन केदार बाबू के प्रशंसक थे। अशोक जीतू भी केदार जी के शिष्यवत थे, इसीलिए उन्होंने अपने गुरु ऋण को चुका दिया, उनकी मूर्ति स्थापित कराकर। यहाँ यह बताना भी जरूरी है कि केदार बाबू की तमाम अनिच्छा के बावजूद सरकार ने उनको सरकारी वकील ( डी जी सी क्रिमिनल ) नियुक्त कर दिया और वे ताउम्र इस पद पर रहे।

 

“अंत मे केदार बाबू की एक बहुचर्चित कविता का उल्लेख जरूरी है ~

“जिऊँगा लिखूँगा
कि मैं जिंदगी को
तुम्हारे लिए और अपने लिए भी
अनूठी मिली एक निधि मानता हूँ
कि मैं लेखनी को
हिमालय हॄदय और सागर हृदय की
सती पार्वती और रमा मानता हूँ।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *