लोक कलाविद् डॉ मधु श्रीवास्तव की पुण्य तिथि पर हुआ चितेरी कला की कार्यशाला का आयोजन
अतिथियों ने डॉ श्रीवास्तव की स्मृति में उनके द्वारा लिखित पुस्तक का विमोचन किया
झांसी। रविवार को राजकीय संग्रहालय झांसी में तीन दिवसीय कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि डॉ . सुरेश दुबे, पूर्व क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी, झांसी एवं डा0 श्वेता पाण्डेय समन्यवयक, ललित कला विभाग, बुन्देलखण्ड विश्विविद्यालय तथा विशिष्ट अतिथि डॉ . प्रदीप कुमार तिवारी द्वारा दीप प्रज्ज्वलित करके किया । उसके उपरान्त स्व0 डा0 मधु श्रीवास्तव की स्मृति में उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया। इसके उपरान्त प्रदर्शनी का अवलोकन अतिथियों द्वारा किया गया।
अवलोकन करते हुए सुरेश दुबे ने कहा कि चितेरी लोक कला वास्तव में एक जीवन्त लोक कला है और यह समूचे बुन्देलखण्ड का शान है। उक्त प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए डा0 श्वेता पाण्डेय ने कहा कि कला किसी परिघि में नहीं बधती है और इस कला की जीवन्तता को डा0 मधु श्रीवास्तव जी ने वास्तव में जिया है और चितेरी कला को सिर्फ बुन्देलखण्ड ही नही बल्कि राष्ट्रीय और अर्न्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलायी। डा0 मनोज कुमार गौतम ने कहा कि संग्रहालय संस्कृति विरासत के संरक्षण और संवर्धन के लिये दृढ़ संकल्पित है।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में डा0 मधु श्रीवास्तव जी द्वारा लिखित पुस्क का विमोचन एवं परिचर्चा हुई। उक्त परिचर्चा में बुन्देली कला एवं चितेरी कला पर गहन विचार विमर्श करते हुए वक्ताओं ने अपने विचार रखे। बुंदेली रीति रिवाज का तत्व संधान गोलोक वासी डॉक्टर मधु श्रीवास्तव जी की सद्य प्रकाशित रचना है। यश पब्लिकेशंस दिल्ली द्वारा इसका प्रथम संस्करण जून 2024 में किया गया। इस पुस्तक की विषय वस्तु को 6 अध्यायों में विभक्त करके लेखिका ने बुंदेलखंड के ऐतिहासिक भौगोलिक सांस्कृतिक सीमांत वर्णन करते हुए यहां के महत्व को पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास किया है।
पुस्तक में लेखिका ने बुंदेलखंड के रहन-सहन यहां के घरों की बनावट, लोगों की कार्यशैली, सामूहिक कार्यक्रम ,मुख्य व्यवसाय ,जातिगत कार्य शैली, प्रमुख खेल, पारंपरिक धातुए एवं पारंपरिक व्यवसाय, पारंपरिक वस्त्र ,आभूषण आदि का दृश्य पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
इन सब का वर्णन करते समय लेखिका ने ऐसी भाषा शैली एवं लौकिक शब्दों का प्रयोग किया है जो बुंदेलखंड की आत्मा में वास करते हैं। कहीं पर बनावटीपन या कृत्रिमता नहीं दिखाई देती है ।बुंदेलखंड से संबंध रखने वाला हर पाठक इस पुस्तक से स्वयं को कहीं न कहीं जुड़ा हुआ पाता है। लेखिका ने बुंदेली रीति रिवाजो पर आधुनिकता का जो प्रभाव हुआ समय के अभाव या अज्ञानता के कारण या प्राचीन व्यवस्थाओं के उपलब्ध न होने के कारण जो परिवर्तन क्रमिक रूप से कर लिया गया है ।पुस्तक के अंतिम अध्याय में लेखिका ने सार संक्षेप लिखते हुए बुंदेलखंड के रीति रिवाजो का व्यापीकरण प्रस्तुत किया है जो कि सराहनीय है। लेखिका का यह प्रयास निश्चित ही पाठकों को बुंदेलखंड के महत्व से अवगत कराने में सहायक सिद्ध होगा।
उक्त अवसर पर सर्वश्री सलिल चौहान, किशन सोनी, परशुराम गुप्ता, डा0 प्रमिला सिंह, सविता साहू, जगदीश लाल, अशेक वर्मा, मृदुला सक्सेना, एम0 बी0 वर्मा, सुनील शर्मा, राजेश श्रीवास्तव, राकेश सरन, बबीता वर्मा, कामनिी बघेल, अलख साहू, अपूर्व सिंह, प्राची खरे, अतीन जैन, अंकिता श्रीवास्तव, डा0 उमा पाराशर एवं अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।