जिले में सुधर रही एनीमिया की स्थिति

जालौन (अनिल शर्मा)। जिले में खून की कमी से पीड़ित महिलाएं और किशोरियां की संख्या में सुधार हुआ है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट -5 के अनुसार छह माह से लेकर पांच साल तक के 55.2 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं, जबकि पिछले सर्वे में वर्ष 2015-16 में यह प्रतिशत 84.8 था। वहीँ गर्भवती की स्थिति में भी सुधार हुआ है।

 

पिछले सर्वे में जहां 59.3 प्रतिशत गर्भवती एनीमिया पीड़ित थी तो नए सर्वे में यह स्थिति सुधरकर 52.7 प्रतिशत हो गई है। इसी तरह 15 से 19 साल तक की किशोरियों में वर्ष 2015-16 के सर्वे में जहां 67.5 प्रतिशत किशोरियां एनीमिया पीड़ित थी तो इस बार यह स्थिति सुधरकर 39.5 प्रतिशत हो गई है।

अपर मुख्य चिकित्सा अधिकरी आरसीएच डॉ वीरेंद्र सिंह का कहना है कि एनीमिया का मतलब हीमोग्लोबिन की कमी होना है। थकान, काम में मन न लगना, सुस्ती बनी रहना आदि इसके लक्षण है। आहार में आयरन, विटामिन बी-12, फोलिक एसिड और पौष्टिक खाद्य पदार्थों का सेवन न करने से भी एनीमिया खतरा होता है। महिलाओं में एनीमिया की कमी का कारण दो बच्चों के बीच अंतर कम होना, मां का पर्याप्त आहार और दवा न लेना आदि होता है|मां के स्वास्थ्य प्रभावित होने से बच्चों पर भी इसका असर पड़ता है।

एनीमिया से बचाव के लिए संचालित है कई योजनाएं
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ एनडी शर्मा का कहना है कि महिलाओं को एनीमिया से बचाने के लिए शासन स्तर से कई योजनाएं चलाई जा रही है। शासन से पौष्टिक आहार सेवन के लिए धनराशि तक दी जा रही है। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत गर्भवती को गर्भधारण से लेकर प्रसव तक अलग अलग किश्तों में पांच हजार रुपये मिलते है। इसके अलावा हर माह की नौ तारीख को एचआरपी (उच्च जोखिम वालीगर्भावस्था) महिलाओं की विशेष जांच की जाती और दवाइयां दी जाती है। बच्चों के लिए राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) और राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके) जैसे कार्यक्रम संचालित हो रहे हैं। आयरन और कैल्शियम की टेबलेट वितरित कर उन्हें खानपान के लिए जागरुक भी किया जा रहा है।

 

सामान्य होता है 11.5 हीमोग्लोबिन
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ एके सिंह का कहना है कि सामान्य महिला के शरीर में 11.5 से 15 ग्राम हीमोग्लोबिन होना चाहिए। मगर अधिकांश महिलाओं में दस ही हीमोग्लोबिन मिलता है। आमतौर पर इसे सामान्य माना जाता है। इससे कम होने पर रक्त की कमी मानी जाती है। सात ग्राम प्रति डेसीलीटर से कम रक्त की कमी खतरनाक होती है।

खून की कमी से यह हो सकती है दिक्कत
• बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है
• चिड़चिड़ापन, भूख न लगना, बार बार बीमार होना
• गर्भ में बच्चे का ठीक से विकास न होना
• प्रसव के दौरान अत्याधिक रक्तस्राव होने से जच्चा की जान को खतरा

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