यातनाओं के बाद भी दूसरी आजादी के दीवानों का नहीं टूटा हौंसला
अनिल शर्मा
उरई/जालौन। आज 48 वर्ष बीत गये हैं। लेकिन आपातकाल के वो काले दिन आज भी याद हैं लेकिन यातनाओं के बावजूद दूसरी आजादी के लिये संघर्ष करने वाले दीवानों के हौंसले नहीं टूटे थे। यह कहना है भारतीय लोकतंत्र रक्षक सेनानी समिति के प्रदेश अध्यक्ष राजाराम व्यास का। वे जालौन जिले के मुख्यालय उरई के मुहल्ला राजेन्द्रनगर के निवासी हैं। श्री व्यास जी बताते हैं कि वर्ष1975 में वे हमीरपुर जिले में सरस्वती शिशु मन्दिर में आचार्य के पद पर काम करते थे। इसी के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शाखा भी लगाते थे वे शाखा में मुख्य शिक्षक भी थे।
हमीरपुर के जिला प्रचारक ओमप्रकाश तिवारी जी थे, जैसे 25 जून की रात तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की, हम लोगों ने गोपनीय बैठकें शुरू कर दीं और इमरजेन्सी का विरोध कैसे-कैसे किया जाये, इसकी रणनीति बनाने लगे। तभी 4 जुलाई 1975 को केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, आर0एस0एस0, जमायते इस्लामी, आनंद मार्ग सहित कई संगठनों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। जिसके चलते शाखा लगाना या गोपनीय मीटिंग करना और भी दूभर हो गया।
जिला प्रचारक ओमप्रकाश तिवारी व मै भेष बदलकर हमीरपुर जिले में अलग अलग स्थानों में स्वयंसेवकों व जन संघ के पदाधिकारियों के साथ गोपनीय बैठक करने लगे। तभी 4 जुलाई की रात हमीरपुर के मुहल्ला सुभाष बाजार में, जहां मै एक वैश्य परिवार के मकान में किराये का कमरा लेकर रहता था, वहां पुलिस ने छापा मारा, कमरे से राष्ट्रीय स्वय सेवक संघ का सहित्य, गणवेश, परमपूज्य सरसंघ चालक डा0 केशवराव बलिराम हेडगेवार तथा सरसंघ चालक गुरूजी गोलवरकर के चित्र भी ले लिये और मुझे कोतवाली में पकड़कर ले गये। वहां कुछ समय मै अकेला ही गिरफ्तार होकर के आया था। उस समय कोतवाल खुर्शीद गौहर था वो बहुत ही सख्त मिजाज का था और हम लोगों को यातना देने में नहीं चूकता था।
इसके बाद ओमनारायन द्विवेदी, जयकरन सिंह एडवोकेट, इन्द्र बहादुर सिंह प्रधान सुरौली इनको भी गिरफ्तार करके लाया गया। उधर प्रशासन ने जेल में भी सख्ती के लिये मुखबिर भी तैनात कर दिये थे। उधर जेल में हमीरपुर से हम लोगों को आगरा सेन्ट्रल जेल में भेज दिया गया जहां बाबा जय गुरूदेव और हाजी मस्तान जैसे लोग भी वहां बंद थे। इसके बाद 19 नवम्बर 1975 को हम लोगों को फतेेहगढ़ सेन्ट्रल जेल भेजा गया जहां पर जगदेव प्रसाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, गोविन्द दयाल गुप्ता, सूर्यप्रताप शाही थे। लेकिन जेल में हमारी बैरकों में केाई पंखा नहीं था। हम लोगों को कभी-कभी तन्हाई बैरक में भी बंद कर दिया जाता था।
जालौन जिले मे उस समय पी0एल0 पुनिया जिलाधिकारी थे, जो बहुत सख्त थे इस दौरान श्यामजी गुप्ता, दलगंजन सिंह, अशोक मिश्रा, डा0 अवध बिहारी, राधेश्याम दांतरे पत्रकार, लालजी महन्त, आनन्द भगवान द्विवेदी, कृष्ण कुमार पालीवाल, दादा बाबूराम एम0काम0, राजेन्द्र रावत, रमेश तिवारी कालपी, श्यामदास निरंजन आदि भी पहले से बन्द थे।
इस बीच एक घटना हुयी किसी ने एक चप्पल फेंककर तत्कालीन डी0एम0 पी0एल0 पुनिया को मारी। इसके बाद हम सभी लोगों को तन्हाई में बन्द कर दिया गया। हम लोग ने खाना पीना छोड़ दिया और जब भी एक साथ बैठते चादर ओढ़कर हाय मताई मर गये, कैसे कैसे दिन आ गये, के नारे के साथ-साथ इन्दिरा गांधी मुर्दाबाद, तानाशाही मुर्दाबाद के भी नारे लगाते थे। जेल में हम लोग प्रतिदिन शाखा भी लगाते थे और वहां पर कोई न कोई विषय पर विमर्श भी होता रहता था। माधौराव देशमुख हम लोगों की तमाम विषयों पर ज्ञानवर्धक जानकारियंा देते रहते थे। मैने बी0ए0 जेल से ही किया। जेल से छूटनें के बाद एल0टी0 एम0ए0 हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृति, राजनीतिशास्त्र में भी किया। इसके बाद मै छत्रसाल इ0का0 जालौन में एल0टी0 ग्रेड शिक्षक हो गया। लेकिन जिस तरह की जेल मंे यातनायें दी गयी, जिस तरह से बात-बात पर तन्हाई दी गयी, जिस तरह से परिवार 19 महीने तक हम लोगों से मिल नहीं पाया, जिस तरह से तमाम जेलर बिना वजह हम राजनीतिक बंदियों को प्रताड़ित करते थे, वो सोच-सोचकर आज भी दिल और दिमाग में दहशत सी भर जाती है।
लोकतंत्र सेनानी कल्याण परिषद के प्रदेश के वरिष्ठ नेता, समाजवादी चिंतक अशोक गुप्ता महाबली जो इमरजेन्सी के दौरान पुलिस को बराबर छकाते रहे, वो साइक्लो स्टाइल से इमरजेन्सी के खिलाफ पर्चे छाप-छापकर जनता को जागरूक करते रहे, उन्होंने प्लास्टिक के ब्लैक बोर्डों में भी लिखकर कानपुर और लखनऊ महानगर में विभिन्न मुहल्लों में जाकर रात में टांग देते थे जिन्हें लोग उत्सुकता से पढ़ते थे। इतना ही नहीं उन्होंने लखनऊ, कानपुर और उरई मेें नगाड़ा बजाकर लोगों को इकटठा करवाते और इमरजेन्सी के खिलाफ भाषण देकर भाग जाते, इसमें कई बार नगाड़ा बजाने वाले को भी पुलिस पकड़ कर ले गयी, लेकिन अशोक गुप्ता हाथ नहीं आये।
वे बताते हैं कि वे डीएवी कालेज कानपुर में बीए के स्टूडेंट थे और युवजन सभा के कार्यकर्ता थे। उस समय लोक नायक जयप्रकाश नारायन की सम्पूर्ण क्रान्ति का आंदोलन पूरे देश में चल रहा था लेकिन बिहार में इसका खासा जोर था। भ्रष्टाचार के खिलाफ इस आन्दोलन से प्रभावित होकर हम इस आन्दोलन में जुड़ गये। 25 जून 1975 को जब हम लोग डी0ए0वी0 हास्टल में अपने कमरे में सो रहे थे, तो 26 जून की सुबह जब हम लोग सोकर उठे तो हमारे हास्टल को पुलिस ने घेर लिया था, लेकिन हम लोग जिसमें संतोष सिंह चन्देल डीएवी कालेज कानपुर छात्रसंघ अध्यक्ष, प्रिय कुमार तिवारी फतेहपुर, कृष्ण पाल भदौरिया कानपुर, सोने सिंह यादव मुरीदपुर सहित कई साथी सीढ़ियों से चढ़कर हास्टल की छत पर पहुंचे और वहां से पीछे से रस्सियों के सहारे उतरकर फरार हो गये।
हम लोगो ने 27 जून 1975 को ब्रजेन्द्र स्वरूप कानपुर पार्क में रात्रि 11 बजे एक गुप्त मीटिंग की जिसमें विजय अग्निहोत्री, गणेश दीक्षित, वी0के0 त्रिपाठी, चतुर त्रिपाठी, शिवकुमार बेरिया, श्यामलाल गुप्ता, अरूण मिश्रा सहित तमाम युवा नेता मौजूद थे, जो सभी समाजवादी युवजन सभा से भी जुड़े हुये थे, हम लोगों ने साइक्लो स्टाइल मशीन पर सरकार विरोधी पर्चेे छापकर कानपुर एवं लखनऊ के विभिन्न मुहल्लों में बंटवाये। इसके बाद पुलिस ने मुखबिरों की सूचना पर छापेमारी शुरू कर दी, मुझे पता चला कि मेरे घर उरई में पुलिस ने कुर्की कर ली है तो मै वहां से फिर उरई आ गया और यहां दलगंजन सिंह, श्रीपाल सिंह, बाबू हरिश्चन्द्र सिंह, जमींपाल सिंह, विजयकरन नाथ विसारिया, श्याम सुन्दर गुप्ता, बाबूराम एम0काम0 इनके साथ उरई जेल में रहा। इसी दौरान कानपुर और उन्नाव जेल में भी मुझे ट्रान्सफर किया गया। जहां चौ0 रामगोपाल सिंह, चौधरी हरिमोहन सिंह, चौधरी नरेन्द्र सिंह आदि से भी मिलना हुआ। रविदास मेहरोत्रा छात्र नेता के साथ 70 बार से अधिक बार मै जेल गया।
सबसे मजेदार बात यह है कि उरई में इमरजेन्सी के दौरान जितने भी दिन मै भूमिगत रहा, उस दौरान मै रात्रि में कांग्रेस के जिला कार्यालय शहीद भवन की छत पर ही सोता था, और पुलिस को कभी शक भी नहीं हुआ। मुझे देशद्रोह धारा 124 और मीसा के तहत जेल भेजा गया था। पुलिस ने और जेल में मुझे इन्दिरागांधी की तानाशाही के खिलाफ नारेबाजी करने में कई बार मुझे बुरी तरह पीटा गया और जेलों में कई बार तन्हाई में भी रखा गया। लेकिन हमने और हमारे युवा साथियों ने कभी हार नहीं मानीं।