श्रीमद भागवत कथा के श्रवण से मिलती है जीवन के भव सागर से मुक्ति : प्रदीप जी महाराज

भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का प्रसंग सुन भव विभोर हुए श्रोता
चित्रकूट (रतन पटेल)। जिला मुख्यालय के पुरानी बाजार स्थित गायत्री मंदिर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा में कथावाचक प्रदीप पांडेय जी महाराज ने श्री कृष्ण जन्मोत्सव,बाल लीला, उधव चरित्र एवं रुक्मिणी विवाह की कथा का रसपान कराया। भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भव विभोर हुए श्रोताओं ने कथा के बीच में राधे- राधे का जयघोष लगाया।

श्रीमद् भागवत कथा का रसपान कराते हुए व्यास प्रदीप पांडेय महाराज ने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करना संसार का सर्वश्रेष्ठ सत्कर्म है, यह भगवान का वांग्मय स्वरूप है, जो जन्म जन्मांतर के पुण्य उदय होने पर प्राप्त होता है। ना भागवत की नियती ब्रह्म होना है, यह देव दुर्लभ है किंतु मनुष्यों को सुलभ होकर ज्ञान गंगा के रूप में प्रवाहित हो रही है। हर मनुष्य को समाज में अच्छा काम करना चाहिए। भागवत को सुनने से पाप नष्ट होता है। भागवत कथा एक ऐसा अमृत है कि इसका जितना भी पान किया जाए तब भी तृप्ति नहीं होती। आज के प्रसंग में कथावाचक में यशोदा मां के साथ बालपन की शरारतें, श्रीकृष्ण का गो प्रेम, माखन चोरी, गोकुल में नंदलाल उत्सव समेत कई प्रसंगों का कथा के दौरान वर्णन किया।

 

वही कथा में भगवान श्री कृष्ण-रुक्मणी के विवाह का प्रसंग सुनकर श्रद्धालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। महाराज ने बताया कि गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण से उन्हें पति रूप में पाने की इच्छा प्रकट की। भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों की इस कामना को पूरी करने का वचन दिया। अपने वचन को पूरा करने के लिए भगवान ने महारास का आयोजन किया। इसके लिए शरद पूर्णिमा की रात को यमुना तट पर गोपियों को मिलने के लिए कहा गया। सभी गोपियां सज-धजकर नियत समय पर यमुना तट पर पहुंच गईं। कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर सभी गोपियां अपनी सुध-बुध खोकर कृष्ण के पास पहुंच गईं। उन सभी गोपियों के मन में कृष्ण के नजदीक जाने, उनसे प्रेम करने का भाव तो जागा, लेकिन यह पूरी तरह वासना रहित था।

 

इसके बाद भगवान ने रास आरंभ किया। माना जाता है कि वृंदावन स्थित निधिवन ही वह स्थान है, जहां श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। यहां भगवान ने एक अद्भुत लीला दिखाई थी, जितनी गोपियां उतने ही श्रीकृष्ण के प्रतिरूप प्रकट हो गए। सभी गोपियों को उनका कृष्ण मिल गया और दिव्य नृत्य व प्रेमानंद शुरू हुआ। रुक्मिणी विवाह का वर्णन करते हुऐ कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने सभी राजाओं को हराकर विदर्भ की राजकुमारी रुक्मिणी को द्वारका में लाकर उनका विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया।

 

मौके पर आयोजक मंडली की ओर से आकर्षक वेश-भूषा में श्रीकृष्ण व रुक्मिणी विवाह की झांकी प्रस्तुत कर विवाह संस्कार की रस्मों को पूरा किया गया। कथा के साथ-साथ भजन संगीत भी प्रस्तुत किया गया। इस सात दिवसीय भागवत कथा के सफल आयोजन में श्रीेमती रमा रानी दास,रंजना खरे आदि मंडली के सहयोगियों का सराहनीय योगदान रहा।

 

इस मौके पर समाजसेवी राजेश रंजन दास,श्रवण कुमार गुप्ता, मधुलिका, वैशालिनी खरे,पूजा नामदेव, शालनी खरे,अनुभा,प्रमिला मिश्रा,शर्मीला श्रीवास्तव,इंद्रिरा अग्रवाल,नीलम श्रीवास्तव,रानी आदि सैकडों मौजूद रहे।

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