163 वर्ष में तीसरी बार बंद किया गया लक्ष्मीगेट
1857 में अंग्रेजों से और अब कोरोना से रक्षा के लिए बंद किया है दरवाजा
झांसी। कोरोना के कहर ने प्रशासन और लोगों को यह अच्छी तरह से समझा दिया है कि हमारे पूर्वजों ने जो कुछ भीं सुरक्षा के लिए बनाया वह आज भी संकटकाल में उतना ही महत्व रखता है। पूर्वजों की इन धरोहरों को संभालना और संरक्षित करना शासन और प्रशासन के साथ साथ हर नागरिक का कर्तव्य है। देश दुनिया में मौत का कहर बरपा रहे नोवल कोरोना वायरस ने वीरांगना भूमि झांसी में भी दस्तक दे दी है। साथ ही इस नगर में इतिहास ने भी एक बार फिर 163 वर्ष बाद खुद को दोहराया है। इसके चलते 1857 के बाद झांसी की रक्षा के लिए दूसरी बार लक्ष्मीगेट को बंद किया गया है। हालांकि एक बार बिजली के आंदोलन के लिए भी इसे बंद किया गया था।
कोरोना के कहर से बचने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन का यह दूसरा चरण अपने समापन की ओर है। बीते रोज दूसरे चरण के 13वें दिन नगर के भीड़भाड़ वाले इलाके ओरछा गेट में एक कोरोना संक्रमित महिला के मिलने के बाद प्रशासन सतर्क हो गया है। प्रशासन ने इस इलाके से लगे हुए पूरे क्षेत्र को सील कर दिया है। इसके साथ ही इसकी सीमा से लगे हुए 5 अन्य मोहल्लों को भी सील किया गया है। इन क्षेत्रों में खाद्य सामग्री,दवाएं व सेनेटाइजिंग टीम को भर घुस पाने की अनुमति दी गई है। शहर के दूसरे हिस्सों में संक्रमण के प्रसार पर प्रभावी नियंत्रण लगाने के उद्देश्य से ही ऐतिहासिक लक्ष्मीगेट के दोनों दरवाजों को पूरी तरह बंद करने का फैसला प्रशासन ने लिया है। प्रभावित इलाके में जरूरी सामान मुहैया कराने की प्रक्रिया को सुचारू रखने के लिए सागर गेट का एक ही दरवाजा बंद किया गया है। लेकिन प्रभावित क्षेत्र में किसी तरह की गैर जरूरी आवाजाही पर पूरी एहतिहात के तौर पर तरह से रोक लगा दी गयी है ताकि लोग सुरक्षित रह सकें।
कोरोना का मानव जाति को सबक,अपनी धरोहर संभाल कर रखें
कोरोना महामारी ने एक ओर पूरी दुनिया में मौत का कहर तो बरपाया है साथ ही मानवजाति को कई सबक भी सिखाये हैं। इन्हीं में एक बड़ा सबक यह है कि मनुष्य को अपनी पुरानी धरोहरों को संजोकर और संभालकर रखना बेहद जरूरी है। यह सबक वीरांगना नगरी और उसकी जनता समेत प्रशासन को भी इस महामारी ने सिखाया है। किले और किले के चारों ओर बने परकोटे में 10 दरवाजों और 12 खिड़कियों को दुश्मनों से नगर के लोगों की रक्षा के लिए बनाया गया था। निर्माण काल से ही इन संरचाओं ने अपने महत्व को साबित भी किया। सबसे पहले 1857 में झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से अपने लोगों की रक्षा के लिए किले में बने इन दरवाजों और खिडकियों को बंद करने का फैसला किया था। इसी दौरान लक्ष्मीगेट भी बंद किया गया था। हालांकि गद्दारांे ने ओरछा गेट और सैंयर गेट खुलवाकर शौर्य की देवी को परास्त करने की साजिश रची थी। दूसरी बार आजाद भारत के आंदोलनकारियों ने क्षेत्र में पनपी बिजली की जबरदस्त समस्या से निजात पाने के लिए लक्ष्मी गेट को बंद किया था और बीते रोज कोरोना के कहर से शहर को बचाने के लिए इतिहास को दोहराते हुए लक्ष्मीगेट को बंद किया गया है।
संकट में हर बार काम आई एतिहासिक धरोहरें
इन तीनों उदाहरणों से स्पष्ट है कि जब भी नगर पर संकट के बादल मंडराये हैं तो दुश्मन चाहें वह अंग्रेजों जैसे प्रत्यक्ष रहे हो या फिर कोरोना वाॅयरस जैसे आधुनिक अप्रत्यक्ष दुश्मनों का आक्रमण रहा हो, वीरांगना नगरी के लोगांे को बचाने के लिए शहर की सुरक्षा के मजबूत प्रहरी रहे इन दरवाजो और खिड़कियों ने अपनी प्रासंगिकता साबित की है। हालांकि आधुनिकता की अंधी दौड़ में कहीं न कहीं शासन ,प्रशासन और लोग भी अपनी इन धरोहरों का महत्व भूलते जा रहे थे। इसी कारण किले का परकोटा अतिक्रमण की मार झेलते हुए अपने अस्तित्व को निरंतर खोता जा रहा है।
अस्तित्व खोते 10 दरवाजे और 12 खिड़कियां
पूरी वीरांगना नगरी दस दरवाजे लक्ष्मी गेट, दतिया गेट, ओरछा गेट, सैंयर गेट, दतिया गेट, झरना गेट ,बडागांव गेट, भांडेरी गेट,सागर गेट और उन्नाव गेट से घिरी हुई है। इसके अतिरिक्त यहां पर 12 खिड़कियां भी हैं। खिड़कियांे में गनपत खिड़की, सूजेखां की खिड़की, सागर खिड़की, पचकुईयां खिड़की , बिलैया खिड़की ,अलीगोल खिड़की और भैंरो खिड़की सहित बारह खिड़कियां भी जर्जर और क्षतिग्रस्त हालत में हैं। पहले नगरपालिका और अब नगरनिगम की अनदेखी इन ऐतहासिक धरोहरों को नष्ट होने की कगार पर पहुंचा रही हैं।