मन में न पालें कोई भय, कोरोना का खत्म होना है तय: सीएमओ
हमें बीमारी से लड़ना है न कि बीमार से, सन्देश को मानें
झांसी। कोविड-19 को हराना है तो अपने मन को समझाना होगा, न कि घबराना होगा। संक्रमण को दूर भगाने का एक ही मूलमंत्र है-जरूरी सावधानी बरतना। इसके बावजूद यदि कोई संक्रमण का शिकार हो जाता है तो वह कोई आत्मग्लानि न पाले, क्योंकि कोरोना पर विजय पाने वालों की दर बहुत अधिक है। सरकार व स्वास्थ्य विभाग द्वारा भी इस बारे में लगातार विभिन्न माध्यमों के जरिये लोगों को जागरूक किया जा रहा है। यही नहीं किसी को फोन मिलाने पर भी सबसे पहले यही सन्देश सुनाई देता है हमें बीमारी से लड़ना है न की बीमार से। यह बात मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. जीके निगम ने कही।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. जीके निगम ने बताया कि कोरोना की श्रृंखला (चेन) को तोड़ने के लिए पूरे समाज को कुछ जरूरी बिन्दुओं पर अपनी सोच और व्यवहार में बदलाव लाना बहुत ही जरूरी है, वह जरूरी बिंदु हैं इलाज के प्रति समर्पित चिकित्सकों व अन्य स्टाफ के साथ किसी भी तरह का बुरा बर्ताव न करना, मरीजों के प्रति कोई भेदभाव न करना, चुप्पी तोड़कर सेवा में लगे लोगों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करना और मरीजों की हौसला अफजाई करना और मरीज के उपचार में किसी तरह की देरी न करना। इन्हीं बिन्दुओं के पालन से हम शीघ्रता के साथ कोरोना को हरा सकेंगे।
तिरस्कार नहीं तिलक करें
स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी डा. विजयश्री शुक्ला ने कहा कि यदि किसी की कोरोना वायरस की रिपोर्ट पाजिटिव आती है तो घर-परिवार या आस-पड़ोस के लोग संक्रमित का किसी भी प्रकार का तिरस्कार न करके उसे जल्दी से जल्दी खुशी-खुशी इलाज के लिए अस्पताल भेजें और भरोसा दिलाएं कि वह जल्दी ही पूरी तरह स्वस्थ होकर घर लौटेगा। उनका यही व्यवहार संक्रमित को मजबूती देगा और वह कोरोना को मात देने में सफल रहेगा, क्योंकि मरीजों के प्रति भेदभाव उनके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। संक्रमित को भी अपने मन में यह पूरी तरह से ठानना होगा कि वह अस्पताल के सभी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए जल्दी से जल्दी स्वस्थ हो जायेंगे। वापसी पर उसका तिलक कर उसकी हिम्मत के लिए सम्मान करें तथा सकारात्मक एवं सहयोगी वातावरण प्रदान करे।
मरीजों की कहानी नर्स की जुबानी
मेडिकल कॉलेज में कोरोना पाजिटिव मरीजों की देखभाल करने वाली नर्स शालिनी का कहना है कि अस्पताल में आने पर मरीज शुरू-शुरू में बहुत परेशान रहते हैं। पीपीई किट पहनकर जब डॉक्टर उनके इलाज के लिए जाते है तो उन्हे महसूस होता है कि ये कैसी बीमारी हो गयी। ये परेशानी शहरी क्षेत्र के मरीजों से ज्यादा ग्रामीण स्तर के मरीजों को ज्यादा होती है। मीडिया आदि के माध्यम से लोगों में इस बीमारी के बारें में जागरूकता है। लेकिन जब वह स्वयं संक्रमित होते है तो वह परेशान हो जाते है। उन्हंे जूनियर डॉक्टर के द्वारा काउंसिल किया जाता है, अगर कोई मरीज घर के लिए चिंतित है तो उसकी मोबाइल आदि के माध्यम से परिजनों से बात कराई जाती है।