पानी के बतासे बेचने को बनाया थी जुगाड़,आज घर तक पहुंचाने के काम आई

पूरे परिवार के साथ भोजन की व्यवस्था और पानी का कैंपर भी लेकर चल रहे
झांसी। कहते हैं कभी-कभी खोटा सिक्का भी खूब चलता है। यही कहावत कृपाशंकर की जुगाड़ गाड़ी के साथ सिद्ध होती प्रतीत होती है। जालौन निवासी कृपाशंकर ने जुगाड़ करके एक ठेले को पुरानी बाइक के साथ जोड़कर पानी के बतासे बेचने के लिए यह जुगाड़ गाड़ी बनाई थी। लेकिन जब लाॅकडाउन का एक चरण गुजरने के बाद उसे अपने परिवार के साथ घर जाने का कोई साधन नहीं मिला तो उसने उसी जुगाड़ में अपना परिवार बैठाकर अपने घर के लिए कूच कर दिया। बीते रोज झांसी से गुजरते हुए उन्होंने हिन्दुस्थान समाचार से विशेष वार्ता करते हुए इसकी जानकारी दी।
जालौन के मई गांव निवासी कृपाशंकर पिछले कुछ सालों से मप्र के उज्जैन में रहता है। गांव में कम जमीन होने के कारण जब परिवार का गुजारा नहीं हुआ तो कृपाशंकर अपने परिवार को लेकर उज्जैन पहुंच गया। उसने वहां पानी के बतासे बेचने का काम डाला और वह चल पड़ा। करीब 10 वर्ष से उज्जैन में निवास करने के बाबजूद भी कृपाशंकर आज तक वहां किराए से रहकर जीवन यापन करता है। उसके साथ उसके दो बच्चे व बहन व बहनोई भी उसके साथ काम करते हैं। लाॅकडाउन का प्रथम चरण तो कृपाशंकर व उसके परिवार ने यह सोचकर गुजारा कि 21 दिन बाद धंधा फिर चल पड़ेगा। लेकिन दूसरे चरण के लाॅकडाउन लगने के बाद उसे यह यकीन हो गया कि अब मामला लम्बे समय तक जाएगा। इस पर कुछ दिनों से वह प्रयास कर रहा था कि किसी तहर घर निकल जाए। फालतू में कमरे का किराया नहीं देना पड़ेगा। और साथ ही वहां पड़े-पड़े वह कब तक खा सकेगा। यह सोचकर उसने काफी प्रयास किया। जब उसकी बात नहीं बनी तो दो दिन पहले ही उसने अपनी जुगाड़ गाड़ी जिसमें पूरा हाथ ठेला लगा हुआ है,में पूरे परिवार को बिठाया। और चल पड़ा अपनी मंजिल की ओर। उसके साथ ही एक मोटर साइकिल से उसका बहनोई शिवम और बहन भी जालौन के लिए निकल पड़े। दो दिन की यात्रा के बाद सभी झांसी पहुंच गए। बीते रोज झांसी मेडिकल बाईपास के समीप शिवम की बाईक का टायर पंक्चर हो गया था। उसी दौरान कृपाशंकर से मुलाकात हो गई। और उसने पूरी आपबीती सुनाई।
जुगाड़ पर रखा था पूरा खाने का सामान
जुगाड़ गाड़ी पर न केवल परिवार के लोग बैठकर सैकड़ों किमी की यात्रा करके आए। बल्कि उसी जुगाड़ गाड़ी पर खाने पीने के सामान से लेकर पूरी गृहस्थी भी उसी पर रखी हुई थी। यही नहीं उसके किनारे पर पानी का एक कैंपर भी बंधा हुआ था। उसी से सभी परिवार के लोग पानी पी रहे थे। उसी जुगाड़ गाड़ी में पंक्चर का सामान भी रखा हुआ था। झांसी में बाईक पंक्चर होने पर उन्होंने स्वयं ही पंक्चर सुधारा था।

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