न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट से पीड़ित 40 बच्चों को मिल चुका है जीवनदान
झांसी। कोतवाली क्षेत्र के छनियापुरा मोहल्ला निवासी ताज मोहम्मद को पहली बार संतान सुख की प्राप्ति हुई, बच्ची के जन्म पर सबको खुशी तो हुई, लेकिन यह खुशी ज्यादा समय तक नही रही। बच्ची की पीठ में फोड़ा होने की वजह से परिवार चिंता में आ गया, लेकिन अब आरबीएसके कार्यक्रम के तहत ऑपरेशन के बाद बच्ची ठीक है।
पेशे से मजदूर ताज मोहम्मद ने बताया कि अक्टूबर 2019 में बच्ची का जन्म हुआ था। लेकिन पीठ पर उभरे फोड़े ने सबकी खुशी छीन ली। पीठ पर उभार देखते ही उसको मेडिकल कॉलेज रिफर कर दिया गया। मेडिकल कालेज में जांच के दौरान मोहम्मद को आरबीएसके कार्यक्रम के अंतर्गत होने वाले मुफ्त इलाज के बारें में पता चला। उन्होने आरबीएसके डीईआईसी मैनेजर डा. रामबाबू से संपर्क किया और इसके बाद नवम्बर में बच्ची का सफल ऑपरेशन कराया गया। बच्ची अभी सही है और डॉक्टर के कहे अनुसार समय समय पर उसकी जांच की जा रही है। मां खुशबू ने बताया कि गर्भ के समय उन्होंने आयरन की गोलियों का सेवन नहीं किया था। यह भी एक कारण है, जिससे बच्ची इस स्थिति में आई। आरबीएसके डीईआईसी मैनेजर डा. राम बाबू ने बताया कि न्यूरल ट्यूब जैसी विसंगति बच्चों के लिए बहुत खतरनाक होती है उनकी जान और उम्र भर की अपंगता का डर बना रहता है। महिलाओं में फॉलिक एसिड की कमी के चलते उनके गर्भ में पल रहे बच्चों को न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट जैसी विसंगति से जूझना पड़ता है। इस तरह की विसंगति से अपने बच्चों को बचाने के लिए महिलाएं गर्भावस्था के समय आयरन फॉलिक एसिड की गोलियां जरूर लें। अभी तक इस विसंगति से पीड़ित 40 बच्चे पहचान में आए जिनमें से सभी का सफल ऑपरेशन कराया गया। इसके साथ ही आरबीएसके कार्यक्रम के अंतर्गत अब तक 483 बच्चों का मुफ्त इलाज हो चुका है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. जीके निगम ने बताया कि यह दिमाग, स्पाइनल कॉर्ड और रीढ़ की हड्डी की जन्मजात विकृति हैं। यह तब दिखता है जब दिमाग और रीढ़ की हड्डी में ऐसा विकार बन जाए कि यह पूर्ण रूप से बंद होने में विफल हो जाए। न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट गर्भावस्था के पहले पांच हफ्तों में ही हो जाता हैं। यह बहुत गंभीर जन्मजात रोग है। अगर इसके इलाज की शुरुआत बच्चे के जन्म के 24 घंटे के अंदर न हो तो बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है। अगर बच्चंे को इलाज मिला तो वह बच सकता है। ऐसे बच्चंे का सही समय पर इलाज न हुआ और तब भी जान बच गई तो वह विभिन्न प्रकार की शारीरिक अथवा मानसिक विकलांगता का शिकार हो सकता है।