दिल्ली से 2 माह के दुधमुई बच्चे को लेकर पैदल निकली कलयुगी सीता
5 दिन बाद पहुंची झांसी, अभी भी किलोमीटरों तक चलना है पैदल
योगेश पटैरिया
झांसी। . अबला तेरी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी। यह कविता दिल्ली से अपने डेढ़ माह के बेटे को लेकर पैदल ही अपने गृह जनपद के लिए निकली महिला पर एकदम फिट बैठती नजर आती है। 5 दिन पहले दिल्ली से जालौन के लिए निकली बीती शाम झांसी पहुंची सीता तपती धूप में अपने डेढ़ माह के बच्चे को भी हाथों में लिए थी। जहां कोई वाहन मिलता था वह वाहन में बैठ जाती थी। बाकी पूरी दूरी उसने पैदल यात्रा करते हुए ही गुजारी है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पत्नी के रुप में भी सीता को 14 वर्ष तक वन-वन भटकना पड़ा था। यहां कलयुग में भी कोरोना कहर के चलते लागू लाॅकडाउन में इस कलयुगी सीता को सड़कों की धूल फांकते हुए अपने घर पहुंचने के लिए भटकना पड़ रहा है।
सीता और उसके डेढ़ माह के बच्चे का दोष यह है कि उसका पति विनोद अपनी जन्मभूमि जनपद जालौन के कदौरा को छोड़कर रोजगार की तलाश में दिल्ली में मजदूरी करने जा पहुंचा था। वहीं 19 मार्च को उसकी पत्नी ने अपने दूसरे बच्चे आर्यन को जन्म दिया था। जबकि उसकी बड़ी बेटी दो वर्ष की आरोही भी इस दंश को झेल रही है। उसे विनोद के साथ दिल्ली में रह रही उसकी 12 वर्षीय भतीजी सृष्टि अपनी गोद में उठाए थी। डेढ़ माह का बच्चा आर्यन उसको आंचल से लगा कर और 2 वर्ष की बेटी आरोही को गोद में लिए भतीजी सृष्टि के साथ जा रही सीता ने बताया कि उसको जालौन के कदौरा गांव पहुंचना है। वह भी अपने पति के साथ दिल्ली में मजदूरी कर रही थी। अब कोरोना महामारी का आतंक इतना बढ़ गया है कि उन्होंने घर आना ही बेहतर समझा। घर जाने के लिए पूरे परिवार को कितने पापड़ बेलने पड़ रहे हैं ये तो सिर्फ विनोद,उसकी पत्नी सीता और उसके बच्चे ही जानते हैं।
डेढ़ महीने तक किया कोरोना कहर से निजात पाने का इंतजार
सीता ने बताया कि आर्यन जब पैदा हुआ तो उसके 3 दिन बाद ही 22 मार्च को पूरे देश में एक दिन बंद का अभ्यास किया गया था। सब खुश थे कि शायद कोरोना भाग गया है। लेकिन दो दिन बाद ही 24 मार्च की रात को प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे देश में कोरोना वाॅयरस को हराने के लिए 21 दिन का लाॅकडाउन लगा दिया। तब भी हमने सोचा कि 21 दिन में कोरोना खत्म हो जाएगा। और सब ठीक हो जाएगा। जब दूसरा और फिर लाॅकडाउन का तीसरा चरण लगा दिया गया।
जब सभी संसाधन समाप्त होने लगे तो घर की ओर रुख किया
लाॅकडाउन के पहले,दूसरे और अब तीसरे चरण के अन्त तक हमारे पास उपलब्ध साधन भी धीरे-धीरे समाप्त हो गए। जो भी पैसा पास में था वह भी खत्म हो गया। तब डेढ़ माह के बच्चे को लेकर हम लोगों ने पैदल निकलना ही बेहतर समझा। उसने बताया कि हम लोग दिल्ली से पैदल ही चल दिए थे। जहां कोई बैठा लेता था वहां बैठ जाती थी। बाकी पदयात्रा करते चले आ रहे हैं।
डेढ़ माह के बेटे ने भी देखा,गरीबी है गाली
झांसी से कानपुर रोड पर बेटे को लेकर तपती धूप में जा रही सीता तो कामगार है। लेकिन 19 मार्च को जन्मे आर्यन को 5 दिन से भीषण गर्मी से झेलनी पड़ रही है। उसको तो पता ही नहीं था कि इस संसार में गरीबी गाली के बराबर है। गरीब का कोई होता ही नहीं है। गरीब के सिर्फ भगवान होते हैं।
अधिक किराए के भय से नहीं बैठे थे आॅटो में
विनोद से जब पूछा गया कि वह अपने परिवार के साथ आॅटो करके क्यों नहीं अपने गांव चला जाता है। इस पर उसका कहना था कि साहब हम गरीब लोग हैं। आॅटो वाले डेढ़ हजार रुपए से कम नहीं मांगेंगे। और हमारे पास इनको देने के लिए इतना पैसा है नहीं।
मण्डलायुक्त के आदेश के बाबजूद भी नहीं रोका किसी ने
हालांकि बीते रोज दोपहर बाद प्रेस नोट जारी करते हुए मण्डलायुक्त सुभाष चन्द्र शर्मा ने ऐलान किया था कि कोई पैदल नहीं जाएगा। पैदल जाने वालों को बस में बैठाकर उनके गंतव्य तक छोड़ा जाएगा। लेकिन पूरे रास्ते इनको किसी ने नहीं रोका था। यह चले जा रहे थे,चले जा रहे थे। झांसी स्थित यूपी-एमपी बाॅर्डर से यह करीब 25 किलोमीटर अंदर आ चुके थे। ये लोग रक्सा बाईपास से होते हुए कानपुर रोड पर जा पहंुचे थे। और पैदल ही जालौन की ओर बढ़ रहे थे। यहां से इनका गांव करीब 160 किलोमीटर था।