जन्मजात बीमारियों की पहचान का आशा कार्यकर्ताओं को मिला है प्रशिक्षण
झांसी। बड़ागांव ब्लॉक के सारमऊ गांव की आशा कार्यकर्ता आशा देवी ने गृह आधारित शिशु देखभाल भ्रमण के दौरान गांव के रहने वाले जीवन के दो दिन के बच्चे का एक पैर मुड़ा हुआ देखा। उन्होंने बच्चे को तुरंत जिला अस्पताल में दिखाने की सलाह दी। जीवन के बच्चे का राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत मुफ्त इलाज चल रहा है। अब बच्चे के पैर काफी हद तक सीधा हो गया है।
अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. एनके जैन ने बताया कि मां और शिशु के लिए प्रसव के बाद के 42 दिन बहुत ही गंभीर होते है, इन दिनों पर जच्चा और बच्चा को विशेष देख रेख की जरूरत होती है। इसी गंभीरता को देखते हुये वर्ष 2017 से गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल कार्यक्रम (एचबीएनसी) चलाया जा रहा है। इसके तहत आशा कार्यकर्ता प्रसव के बाद जच्चा बच्चा की समय समय पर जांच करने उनके घर जाती हैं। इसके साथ ही मां और परिवार को बच्चे और मंा में होने वाले खतरों के बारें में भी बताती है। स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी डा. विजयश्री ने बताया कि सही समय पर मां और शिशु के खतरों के लक्षण को पहचान कर उपचार मुहैया कराना बहुत जरूरी होता है। कई बार हम इन लक्षणों को अनदेखा कर देते है, लेकिन आशा के माध्यम से एचबीएनसी भ्रमण के दौरान इन लक्षणों की पहचान की जाती है, साथ ही वह मां सहित परिवार के सदस्यों को भी इसके बारें में जानकारी देती है। यदि प्रसव घर में होता है तो तो आशा को प्रसव के पहले, तीसरे, 7वें, 14वें, 21वें, 28वें, व 42वें दिवस पर गृह भ्रमण करना होता है। प्रसव यदि अस्पताल में हुआ होता है तो पहला दिन छोड़कर सभी दिनों पर गृह भ्रमण करना होता है। भारत सरकार की नई गाइडलाइन के अनुसार अब आशा को एचबीएनसी भ्रमण के इतर 24 घंटे के अंदर मां और बच्चे को देखना होगा। जनपद में 1195 आशा कार्यकर्ताओं में से 1085 आशाएं गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल के लिए प्रशिक्षित है।