कोरोना: आधुनिकता के दौर में लौटी पुरानी यादें,लड़की के दरवाजे पर जाने लगी बारात

योगेश पटेरिया
झांसी। विश्व में कोहराम मचाने वाले कोरोना ने आधुनिकता की इस होड़ में भारतीय संस्कृति के पुराने दिनों की यादें ताजा कर दी हैं। पूरे देश में चल रहे लाॅकडाउन के चलते मांगलिक कार्यों पर भी संकट खड़ा हो गया है। इसके चलते ग्रीन और आॅरेंज जोन में वर-वधु पक्ष के सीमित लोगों के साथ मांगलिक कार्याें की अनुमति मिल रही है। मजे की बात यह है कि ये मांगलिक कार्य अब अधिकांशतः वधु पक्ष के घर पर ही संपन्न किए जा रहे हैं। इसके चलते वर पक्ष के लोगों को वधु पक्ष का घर देखने का मौका मिल रहा हैै। कुल मिलाकर आधुनिकता की इस होड़ में प्राचीन संस्कृति की झलक देखने को मिलने लगी है। इसे लोग समय का फेर भी बता रहे हैं।
केरोना कहर के पूर्व आधुनिकता के दौर में देश में मांगलिक कार्यों का स्वरुप बदल गया था। लोगों ने पाश्चात्य सभ्यता को अपनाते हुए दिखावे की परंपरा के चलते विवाह घरों में पाणिग्रहण जैसे पवित्र संस्कार को संपन्न कराना शुरु कर दिया था। इस दौरान यह कम ही लोगों को ही भान हो पाता था कि वधु पक्ष का घर या उनका निवास कहां और कैसा है। न ही लोगों को उनके स्नेह और उनके आस पास के वातावरण की कोई जानकारी हो पाती थी। स्नेह भोज का स्वरुचि भोज ले चुके थे। इसमें लोगों ने भारतीय परंपरा के स्नेह भोज को शायद सदैव के लिए अलविदा कह दिया था। यदा कदा ग्रामीण अंचलांे में कमजोर तबके के लोगों के ही मांगलिक कार्य अथवा त्रयोदशी जैसे कार्यक्रम ही स्नेह भोज की शक्ल में देखे जाते थे। 24 मार्च को कोरोना के कहर से बचने के लिए जैसे ही देश के प्रधानमंत्री ने 21 दिन के लाॅक डाउन की घोषणा की। तभी से मांगलिक कार्यक्रमों के लिए निषेधाज्ञा जैसी स्थिति बन गई। शासन और प्रशासन ने बिना अनुमति के भी 5-5 लोग वर-वधु पक्ष के एकत्र होकर शादी करने का प्राविधान अनुमति न होने के चलते भी जारी रखा। ऐसे में लाॅकडाउन के दौरान होने वाली शादियों में वधु के घर पर ही मांगलिक कार्यों को संपन्न कराए जाने का प्रचलन चल पड़ा। पिछले दो माह में वैसे तो वैवाहिक कार्यक्रमों को टाल दिया गया है। आगे की तिथि निश्चत कर ली गई है। लेकिन कुछ ऐसे भी कार्यक्रम रहे जिनको आगे बढ़ाने पर वर्षों तक उनका मुहूर्त ही नहीं बन पा रहा था। ऐसे कार्यक्रमों को बीच के रास्ते से निपटाने की अनुमति दी गई। यह अनुमति केवल ग्रीन जोन मंे ही दी गई थी। आॅरेन्ज व रेड जोन वालों को यह भी छूट नहीं थी। लाॅकडाउन में संपन्न हुए मांगलिक कार्यक्रमों में से अधिकांश कार्यक्रम वधु पक्ष के घर पर ही संपन्न हुए। यही पुरानी परंपरा भी थी। यह परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है।
यह परंपरा लाॅकडाउन के बाद भी रहे कायम
किसान रक्षा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष गौरी शंकर बिदुआ का मानना है कि यह परंपरा लाॅकडाउन समाप्त होने के बाद भी चलती रहना चाहिए। ताकि लोग दिखावे के चक्कर में फिजूलखर्ची से बचंे और बुन्देलखण्ड जैसे पिछड़े क्षेत्र में लोगों के कर्ज में डूबकर आत्महत्या करने की घटनाओं पर भी अंकुश लग सके।
वापस लौटी प्राचीन परम्पराएं
सामाजिक चिंतक और वरिष्ठ पत्रकार रामसेवक अड़जरिया का मानना है कि लाॅकडाउन में बेटी के घर पर बारात आने से पुरानी परम्पराएं पुनः वापस लौट आई हैं। अब रिश्तेदार भी अपने रिश्तेदारों से मिल जुलकर एक दूसरे की कुशल क्षेम पूछने में कोई गुरेज नहीं करेंगे। निश्चत रुप से लाॅकडाउन पुरानी परम्पराओं को वापस लाने का कार्य कर रहा है।

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