कोटा में फंसे छात्रों को लेकर झांसी पहुंची बसें,स्क्रीनिंग के बाद कराया भोजन

छात्रों को उनके गृहजनपदों के लिए किया गया रवाना
झांसी। कोरोना के कहर से बचने के लिए 24 मार्च को देश के प्रधानमंत्री ने 21 दिन का लाॅकडाउन लागू किया था। देश भर में लाॅकडाउन लागू होने के बाद जो जहां था वहीं रह गया। इसके राजस्थान के कोटा में भी उत्तर प्रदेश के हजारों छात्र फंस कर रह गए थे। बीते रोज मुख्यमंत्री के आदेश पर यहां से 100 बसें भेजी गई थी। शनिवार को उनमें से तमाम बसें छात्रों को लेकर दोपहर तक झांसी पहुंच गई। जिले की सीमा पर पहंुचे सभी छात्रों की जांच कराते हुए उनके भोजन का प्रबंध किया गया। उसके बाद उन्हें उनके गृहजनपद के लिए रवाना किया गया।
उत्तर प्रदेश परिवहन की जिन सौ बसों को शुक्रवार को जनपद से कोटा के लिए रवाना किया गया था, उनकी वापसी का सिलसिला शनिवार को शुरू हो गया। दोपहर तक तमाम बसें जनपद की सीमा पर आ पहुंची थी। कोटा में फंसे यूपी के हजारों छात्रों को इन बसों के माध्यम से लाने का सिलसिला शुरू है। जैसे ही जनपद की सीमा पर बसों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हुआ। सीमा पर ही बनाये गए जांच केंद्रों पर इन सभी छात्रों की स्क्रीनिंग का कार्य शुरु किया गया। उसके बाद उन्हें भोजन की व्यवस्था भी की गई। प्रशासन के द्वारा कोटा से छात्रों को लेकर लौटीं बसों के लिए बॉर्डर पर स्थित तीन कॉलेजों को स्क्रीनिंग केंद्र बनाया गया है। कोटा से आने वाली एक बस में करीब 30 विद्यार्थी सामाजिक दूरी का ध्यान रखते हुए बिठाए गए। ये विद्यार्थी प्रयागराज, कौशाम्बी, वाराणसी, बांदा, चित्रकूट सहित उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों के बताए जा रहे हैं। यहां से आगे के लिए इन छात्रों को इन्हीं बसों से रवाना किया जा रहा है। स्टूडेंट्स को यहां बस से बाहर न निकालकर भीतर ही स्क्रीनिंग की गई। प्रत्येक बस में एक ड्राइवर, एक कंडक्टर के अलावा दो सुरक्षाकर्मी ड्यूटी पर लगाये गए हैं। सुबह से ही सीमा पर सुरक्षा के उचित प्रबन्ध किये गए। मण्डलायुक्त सुभाष चन्द्र शर्मा, आईजी सुभाष सिंह बघेल, डीएम आंद्रा वामसी, एसएसपी डी प्रदीप कुमार सहित तमाम अधिकारियों ने सभी सेण्टरों पर पहुंचकर व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया। और बच्चों को सुरक्षित पहुंचाने के लिए दिशानिर्देश देते रहे। हालांकि किसी भी अधिकारी ने छात्रों की संख्या और जनपदों की ठीक-ठीक जानकारी देने से मना कर दिया।
सराहना के साथ राजनीति का राग भी अलापा
कोटा में फंसे हुए छोटे-छोटे बच्चों को घर पहुंचाने की व्यवस्था की सभी लोगों द्वारा सराहना की जा रही है। वहीं कतिपय नेताओं द्वारा इस पर राजनीति करना शुरू कर दी है। बच्चों को बचा कर घर पहुंचाना कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। साथ ही इसमें भेदभाव की भी बातें की गई। तो वहीं कुछ लोग यह भी कहते नजर आए कि ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि कहीं उनके बच्चे इस तरह की मुसीबत में फंसे हुए होते तो क्या वह विरोध करते।

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