कबाड़ में जान डालकर पर्यावरण संरक्षण को जीवन्त करती नीलम सांरगी
खराब सामान से हरा भरा हुआ देश का पहला पार्क बना सुभाष पार्क
झांसी। विश्व पर्यावरण दिवस पर ज्यादातर लोग पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दे पर गंभीर बातें करते हुए एक दूसरे पर दोषारोपण करते नजर आते हैं। लेकिन हकीकत में इससे कुछ संभव हो नहीं पाता। वहीं कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बिना कुछ कहे शांतिपूर्वक इस काम में लगे हुए हैं। साथ ही अपने कार्यों से दूसरों को भी प्रेरित करते हैं। इसके उदाहरण के रुप में बुन्देलखण्ड की वीरांगना नगरी झांसी की नीलम सारंगी लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई हैं। जो बेकार सामान में अपनी कला से न केवल जान डाल देती हैं ंबल्कि लोगों को यह भी शिक्षा देती हैं कि प्रकृति को सहेजने के लिए न तो महंगे संसाधनों की जरूरत है और न ही बड़ी पूंजी की। यदि हमारी सोच ठीक है तो बेकार सामान से भी इस काम को बखूबी किया जा सकता है। इस सोच के साथ नीलम ने नगर के खराब पड़े एक पार्क को भी हरा भरा कर दिया है। यह पार्क बेकार चीजों से परिवर्तित होकर हरा भरा होने वाला देश का पहला पार्क बन गया है।
नीलम स्नातक के साथ-साथ चित्रकला के क्षेत्र में विशेष योग्यता के साथ 30 से 35 साल का अनुभव रखती हैं। पिछले पांच वर्षों से वह घर से बाहर फेंके जाने वाले कबाड़ को सहेजते हुए अपनी कला से उनके रूप रंग में एक चमत्कारिक परिवर्तन कर जान डाल देती हैं। और उन कलाकृतियों से पर्यावरण संरक्षण का काम करती हैं। उनका कहना है कि अगर सभी लोग केवल अपने अपने घर के पर्यावरण को संभालने का काम करें तो इस छोटे छोटे सहयोग से पूरी धरती के पर्यावरण में बेहद सकारात्मक परिवर्तन लाये जा सकते हैं। वह कहती हैं कि पर्यावरण संरक्षण के लिए आपको महंगी वस्तुओं की जरुरत नहीं है। और न ही आपको कोई बडे संसाधन इसके लिए जुटाने हैं। सिर्फ आपका समय और कल्पना खर्च होनी है। प्रकृति को जितना नुकसान हमने पहुंचाया है और जो उसका क्रोध हमें आज कोविड -19 के रूप में झेलना पड रहा है। अगर आगे भी ऐसी परेशानियों से हमें बचना है तो पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाना ही होगा। घर से ही अगर हम छोटे छोटे लेकिन निरंतर प्रयास करें तो न केवल अपने आस पास के पर्यावरण को बदल पायेंगे बल्कि दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित कर सकेंगे।
शौकिया तौर पर शुरु किया कार्य बन गया पर्यावरण संरक्षण की गंभीर मुहिम
नीलम के लिए शौकिया तौर पर बेकार समान को सजाने की शुरू की गयी प्रक्रिया आज पर्यावरण संरक्षण की एक गंभीर मुहिम में बदल चुकी है। उन्होंने इस काम की शुरूआत घर से ही शुरु की। उनका मानना है कि दूसरों को कुछ करने के लिए कहने से पहले खुद अपने घर से उस काम की शुरूआत करके दिखाना जरूरी होता है। वह घर पर ही बेकार पड़ी बोतलों, टब, गिलासों, पुराने जूते,केतली, टायरों ,लकडी के सामान आदि का प्रयोग करती हैं। इसके साथ फूलों के साथ औषधीय पौधों ,सब्जी,सुगंधित और सजावटी पौधों की मदद से घर का ही पर्यावरण बदलने का काम करतीं हैं। वह घर में रसोई के बचे हुए खाद्य पदार्थ ,छिलके आदि के साथ अनुपयोगी वस्तुओं का प्रयोग पर्यावरण के हित में करती हैं। कृत्रित रसायनों और चीजों से वह दूर रहती हैं और हर चीज को प्राकृतिक तरीके से ही इस्तेमाल करती हैं ।
पौधों से बनाती हैं जैविक खाद व दवाईयां
वह पेड़ पौधों के लिए जैविक खाद और जैविक दवाइयों को खुद ही बनाकर इस्तेमाल करतीं हैं। पेड़-पौधों में होने वाली बीमारियों का उपचार भी वह खुद ही करतीं हैं। उनका मानना है कि विभिन्न प्रकार के पौधों के लिए मिट्टी भी भिन्न भिन्न प्रकार की इस्तेमाल की जानी चाहिए। और इसके लिए वह मिट्टी भी घर पर ही तैयार करतीं हैं। वह कहती है कि पेड़ पौधों की देखभाल अपने बच्चों की तरह करें फिर देखें आप उनके लिए कितनी उत्कृष्टता से काम करते हैं। हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि इस काम को करके हम प्रकृति को कुछ दे नहीं रहें हैं ,हम उस पर कोई एहसान नहीं कर रहे हैं। हमेशा याद रखें प्रकृति अगर आप से कुछ लेती है तो बदले मे आपको बहुत कुछ देती है बस उसे सही दृष्टि से देखने की जरूरत है।
इसी हुनर से संवारा गया देश का पहला पार्क बना सुभाष पार्क
वह तमाम स्कूल,कॉलेज, महाविद्यालयों, सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के कार्यक्रमों में हिस्सा लेकन बेकार की चीजों का इस्तेमाल पर्यावरण के हित में करने का तरीका शिक्षकों को सिखातीं हैं। अपने इस हुनर का प्रयोग कर आज वह न केवल अपने घर को संवार रहीं हैं बल्कि हाल ही में झांसी नगर निगम के बेकार पड़े एक पार्क का उन्होंने प्राकृतिक तरीके से और बेकार सामान की मदद से आमूल चूल परिवर्तन किया। यह सुभाष पार्क बेकार सामान से तैयार किये जाने वाला देश का पहला पार्क बन गया है।