आपातकाल के 45 साल: न दलील,न अपील,कुछ ऐसा था हाल: डा. धन्नूलाल गौतम
झांसी। आपातकाल का हाल बड़ा ही भयावह था। समाज में लोग आपातकाल में अधिकारों का हनन होने के विरोध में आवाज उठाने वालों के सहयोग से भी घबराते थे। प्रशासन शासन का विरोध देखना और सुनना पसन्द ही नहीं करता था। उन्होंने एक नियम सा बना लिया था कि न दलील चलेगी न ही किसी की कोई अपील चलेगी। यदि विरोध किया तो सीधे जेल जाओगे। सच पूछिए तो अंग्रेजियत के दर्शन अंग्रेजों का शासन खत्म होने के बाद भी दोबारा देखने को मिल रहे थे। आपातकाल के हालातों का वर्णन करते करते आंदोलन का नेतृत्व कर रहे पूर्व महापौर व संघ के स्वयंसेवक डा. धन्नूलाल गौतम की आंखों के सामने वह मंजर घूम गया।
वरिष्ठ भाजपा नेता डा. धन्नूलाल गौतम ने बताया कि अंग्रेजों के शासन में जब देश गुलाम था उस समय एक प्रथा थी कि जेल में बंद स्वातंत्रता सेनानियों से मिलने भी कोई आता था तो उसके पीछे जासूस छोड़ दिए जाते थे। आपातकाल के हालात भी कुछ ऐसे ही थे। डा. गौतम ने बताया कि समाज के लोग हम लोगों का सहयोग करना चाहते थे,लेकिन सहयोग करने से डरते थे कि कहीं उन्हें भी इस झंझट में घसीट न लिया जाए। कोई भी यदि विरोध करता था तो उसे जेल में ठूंस दिया जाता था। किसी की कोई दलील या अपील मान्य नहीं होती थी। जब जबरन जमानत का दबाव बनाना चाहा तो सभी पर मीसा की कार्रवाई कर दी गई। आलम ये हो गए कि जब तक मीसा लगा रहा तब तक किसी ने भी हम सबकी अपील और दलील की भी सुनवाई नहीं की। उन्होंने बताया कि तब ललितपुर व झांसी एक ही जनपद हुआ करता था। दोनों जनपदों के करीब 119 लोग तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व कांग्रेस सरकार का विरोध करने पर जिला कारागार में ठूंस दिए गए थे। आज के दौर में विश्व के चहेते प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी के अच्छे कार्यों को भी यही लोग लोकतंत्रात्मक विरोधी कार्य बताने से थक नहीं रहे। जबकि राहुल गांधी समेत कांग्रेसियों को अपने स्वयं के कृत्य दिखाई ही नहीं देते।