अन्याय और अत्याचार को मिटाने के लिए भगवान परशुराम की आराधना आवश्यक: अंचल अड़जरिया
लाॅकडाउन का पालन कर घर पर दीपोत्सव के रुप में मनाएं भगवान परशुराम का जन्मोत्सव
झांसी। अन्याय और अत्याचार को मिटाने के लिए भगवान परशुराम की आराधना आवश्यक है। उन्होंने पृथ्वी को अन्याय से मुक्त करने के लिए 21 बार इसे अन्याय विहीन करते हुए ब्राम्हणों को दान दे दी थी। राष्ट्रीय ब्राह्मण युवजन सभा के बुंदेलखंड अध्यक्ष तथा अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद के जिलाध्यक्ष अंचल अड़जरिया ने बताया कि भगवान परशुराम भगवान विष्णु का छठा अवतार हैं। भगवान परशुराम की जयंती बैसाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। इस दिन अक्षय तृतीया का त्योहार भी धूमधाम से मनाया जाता है। वर्तमान में देशभर में भारी आपदा से हुए लॉकडाउन के कारण पंडित अंचल अड़जरिया ने सभी बंधुओं से भगवान परशुराम की जयंती घर मे ही दीपोत्सव के रूप में मनाने की अपील की है। उन्होंने बताया कि प्रातः 6 से 1 बजे के बीच हवन कर इस भीषण महामारी को समाप्त करने का आह्वान करें तो वहीं शाम को 7 से 8 बजे के बीच में दीप दान करें।
उन्होंने बताया कि हिंदू धर्म में विशेष त्योहारों पर गंगा में स्नान का विशेष महत्व है। इसलिए परशुराम जयंती पर भी गंगा स्नान की परंपरा चली आ रही है। मगर इस बार लोगों के लिए गंगा में स्नान कर पाना संभव नहीं होगा, तो वह घर पर ही स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर यह पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। भगवान परशुराम विष्णु के ऐसे अवतार हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि यह चिरंजीवी हैं और हनुमानजी, अश्वत्थामा की तरह सशरीर पृथ्वी पर मौजूद हैं।
भगवान परशुराम के जन्म की है विचित्र कथा
भगवान परशुराम के जन्म की कहानी बहुत ही विचित्र है। यह ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे। ब्राह्मण होते हुए भी इनमें क्षत्रियों के गुण आ गए थे। इसकी एक रोचक कथा है। प्राचीन काल में कन्नौज के राजा थे गाधि। उनकी पुत्री का नाम सत्यवती था। सत्यवती का विवाह भृगु ऋषि के पुत्र से हुआ था। संतान की कामना से सत्यवती अपने ससुर भृगु ऋषि से आशीर्वाद लेने गईं। सत्यवती की मां को भी कोई पुत्र नहीं था इसलिए उसने ऋषि भृगु से माता के लिए संतान का आशीर्वाद मांगा। ऋषि से हुआ था। भृगु ऋषि ने सत्यवती को दो फल दिए और बताया कि स्नान करने के बाद सत्यवती और उनकी माता को पुत्र की इच्छा लेकर पीपल और गूलर के पेड़ का आलिंगन करना है। फिर इन फलों का सेवन कर सत्यवती की मां के मन में लालच आ गया और उन्होंने दोनों फलों की अदला-बदली कर दी। सत्यवती का फल उन्होंने खुद खा लिया और बेटी को अपना वाला फल दे दिया। जब भृगु ऋषि को इस बात का पता चला तो उन्होंने सत्यवती से कहा कि अब तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय गुणों वाला होगा। इससे परेशान होकर सत्यवती ने कहा कि ऐसा न हो। भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय गुणों वाला हो जाए। कुछ समय बाद सत्यवती के गर्भ से महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ।
अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए किसी न किसी में रुप में अवतरित होते हैं भगवान
अन्याय और अत्याचारी किसी भी जाति, वर्ग,अथवा धर्म में पैदा हो सकते हैं। उनका विनाश करने के लिए भगवान किसी न किसी रूप में प्रकट होते हैं। भगवान परशुराम अन्याय, अत्याचार, अनीति और अधर्म के विरोधी थे अतः समस्त न्याय प्रिय धर्म प्रिय बंधु बांधव आमजन को भगवान परशुराम के जीवन से प्रेरणा लेकर उसका अनुसरण करना चाहिए।