योगदिवस : भारतीय राजनीति में नैतिकता का शीर्षासन

पं. राजू शर्मा नौंटा

आज योग दिवस है और इस मौके पर आसन की चर्चा न की जाए, ये बात बेमानी है। वैसे तो योग युक्ति है स्वस्थ जीवन जीने की, लेकिन मैं अपनी बात वर्तमान राजनैतिक वातावरण के परिप्रेक्ष्य में रखना चाहता हूं, इस योग दिवस को माध्यम बनाकर।

वैसे भारतीय वैदिक साहित्य की पर्तों को टटोला जाए तो स्वस्थ शुचिता पूर्ण जीवन में यम, नियम आसन प्राणायाम का जिक्र लाजिमी है, जिनके बगैर धारणा, ध्यान समाधि की कल्पना करना भी सम्भव नहीं है। योग एक विशुद्ध जीवन प्रणाली है, जिसका विस्तार पूर्वक विवेचन महर्षि पतंजलि ने किया है। पतंजलि के अनुसार-

योगश्चित्तव्रत्ति निरोध:

अर्थात मन का सम्यक न्यास। चित्त में उठने वाली विभिन्न तरंगों का निरोध कर सम भाव में जीना ही योग है।

गीता में योगेश्वर ने भी अर्जुन के विषाद को मिटाने के लिए योग का निरूपण किया है।

समत्वं योग उच्यते
कर्मषु कौशलम् योग:

अर्थात कर्म की कुशलता और समभाव में जीवन यापन करना ही योग है। योग का शाब्दिक अर्थ जोड़ना भी है। समाज में ऐसे जीवन जीना कि समाज का हर वर्ग जाति संगठित और जुड़ा रहे।

लेकिन वर्तमान सियासती लोगों ने अपने न्यस्त स्वार्थों में सारे समाज को तोड़कर रख दिया है और प्रयास बदस्तूर जारी है। वैसे राजनीति दो शब्दों का मेल है, राज और नीति। अर्थात नीति पूर्व राज करना।

श्री राम चरित मानस में वर्णन आता है कि राम के राज्याभिषेक का निर्णय सभी मतों अर्थात शास्त्र मत परिवार मत, लोक मत इत्यादि को ध्यान में रखकर ही किया गया।

जौं पाँचहि मत लागै नीका।
करहु हरषि हियँ रामहि टीका॥

अर्थात राजनीति की नींव सभी के सम्यक मत और सुनीति से पोषित होनी ही चाहिए। लेकिन, खेद का विषय है कि हमारे यहां के राजनेता जमीर गिरवी रख चुके हैं अपना।
नाम लोकतन्त्र है लेकिन, न तो यहां शास्त्र की परवाह है और न ही लोक की।

देवी भागवत में राजा उत्तानपाद की कथा आती है, जिसमें राजा की दो पत्नियों सुनीति और सुरुचि में से सुनीति को सुरुचि के दबाव में जंगल में निर्वासित कर दिया जाता है। वह जंगल में रहकर भी योग्य और कुशल नायकत्व गढ़ती है, अपने पुत्र ध्रुव के अन्त:करण में। सुनीति का पुत्र धुंधकारी पर कुसंग का ज्वर सवार हो जाता है, जिसके परिणाम में उसका सारा व्यक्तित्व क्षरण हो जाता है। कथा बड़ी प्रतीकात्मक लेकिन, शिक्षा प्रद है।

आज भारतीय राजनीति ऐसे ही धुंधकाकियों से आपूर हो चुकी है। नीति पूरी तरह से निर्वासित है। नैतिकता के प्रतिमान दम तोड़ रहे है। बस बोलबाला है तो स्वार्थ लिप्सा का।
स्वार्थ के प्रतिमान गढ़कर नैतिकता का शीर्षासन करती वर्तमान राजनैतिक जमात को योग दिवस पर लानत मलामत के साथ बधाई।

Kuldeep Tripathi

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