अधिकारियों और दलालों के गठजोड़ से दैत्य बनता भ्रष्टाचार
पं. राजू शर्मा नौंटा
झाँसी : भ्रष्टाचार एक ऐसा शाश्वत और इच्छाधारी दैत्य है, जो अपना स्वरूप निरंतर बदल रहा है। शायद ही ऐसा कोई काल रहा हो जबकि तन्त्र में यह दैत्य अपनी बुराई के रूप में उपस्थित न रहा हो विलग विलग रूपों में।
देश के महान अर्थशास्त्री और विचारक दादा भाई नौरो जी ने अपनी किताब poverty and un british rule in india में फिरंगियों के समय का विस्तार से विवरण दिया है। उन्होंने बताया है कि किस प्रकार अंग्रेज हमारी समाज, आम जन के लिए उपयोग किए जाने वाले धन को हुण्डियों के माध्यम से बाहर ले जाते थे। फिर यही धन कानूनी तरीके से कम्पनी बनाकर हमारे यहां ही इन्वैस्ट कर लाभ कमाते थे।
आजादी के बाद भी भ्रष्टाचार का निरंतर स्वरूप के अलावा कुछ भी नहीं बदला है। पहले रिश्वत के मामले सुने जाते थे कि फलां अधिकारी ठेकेदार या किसी संस्था से काम या किसी उद्योग के लिए सब्सिडी देने के एवज में पैसा लिया करते थे। इसकी धनराशि उस दलाल को मिलने वाली रकम की तुलना में प्रतिशत रूप से कम होती थी। दलाल इसलिए लिख रहा हूं कि असल लाभार्थियों तक अमूनन योजनाएं पहुंच ही नहीं पाती हैं। दलालों को ही लाभार्थी बता दिया जाता है।
उस समय शायद यह दैत्य तरुणावस्था में रहा होगा। आज भीम काय रूप में विकसित हो चुका है। आज किसी भी सरकारी लाभ की योजनाओं में दलालों और अधिकारियों के बीच हिस्सेदारी के अनुबन्ध तय होने लगे हैं। वास्तविक लाभ जिन्हें मिलना चाहिए उन्हें तो पता ही नहीं चलता कि उनका हक कोई दलाल और अधिकारी हजम कर चुका है।
आपकी पीढ़ियां कुकर्मी और अकर्मण्य निकलेंगी
अरे साहब, खूब खाइए। लेकिन इतना याद रहे कि यह वंचितों के हक का पैसा है। पेट और पाताल फोड़कर निकलेगा। साथ में हर्ट अटैक, ब्लड प्रेशर और कैंसर जैसी बीमारियां उपहार में दे जाएगा। आपकी पीढ़ियां कुकर्मी और अकर्मण्य निकलेंगी बोनस के रूप में।