बाँदा के केदार सम्मान में साहित्यकारों का जुटान
बांदा (अनिल शर्मा)। जनकवि केदारनाथ अग्रवाल के स्मृति दिवस पर बाँदा में आयोजित एक साहित्यिक कार्यक्रम में दो वरिष्ठ कवियों को “मुक्तिचक्र जनकवि केदारनाथ अग्रवाल स्मृति सम्मान” से सम्मानित किया गया। वर्ष 2024 का यह सम्मान भोपाल की वरिष्ठ कवयित्री एवं एक्टिविस्ट प्रज्ञा रावत को प्रदान किया गया। उल्लेखनीय है कि वे प्रगतिशील लेखक संघ के आधार स्तंभ माने जाने वाले क्रान्तिकारी साहित्यकार और अपने समय सर्वाधिक चर्चित एक्टिविस्ट स्मृतिशेष भगवत रावत की ज्येष्ठ पुत्री हैं। कविता और साहित्य सृजन उनको अपने पिता से विरासत में मिला है।
जबकि वर्ष 2023 का यह सम्मान बीकानेर राजस्थान के वरिष्ठ कवि, नाटककार, बालकवि व गीतकार नवनीत पाण्डेय को प्रदान किया गया। नवनीत पाण्डेय हिन्दी और राजस्थानी भाषा में समान रूप से साहित्य सृजन करते हैं। उन्होंने जनकवि केदारनाथ अग्रवाल की अनेक कविताओं का राजस्थानी में अनुवाद किया है। सम्मान के रूप में दोनों सम्मानित कवियों को सम्मान पत्र और स्मृति चिन्ह भेंट करके तथा अंग वस्त्र पहना कर और माल्यार्पण व पुष गुच्छ देकर सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह का आयोजन बाँदा के जैन धर्मशाला में “मुक्तिचक्र” पत्रिका और जनवादी लेखक मंच, बादा की ओर से संयुक्त रूप से किया गया।
प्रथम सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि एवं गीतकार जवाहर लाल जलज ने की और संचालन किया “मुक्तिचक्र” पत्रिका के संपादक गोपाल गोयल ने। बाँदा की जनवादी परम्परा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने वाले प्रखर आलोचक, उम्दा कवि व व्यंग्य में अपने ठेठ देशी अंदाज में साहित्य सृजन करने वाले प्रखर वक्ता उमाशंकर सिंह परमार ने बीज वक्तव्य दिया। यह द्विदिवसीय साहित्यिक कार्यक्रम / सम्मान समारोह प्रथम दिन चार सत्रो में संपन्न हुआ। पहला सत्र सम्मानित किए गए दो कवियों के सम्मान का था। इस सत्र के मुख्य अतिथि थे ~ बुंदेलखंड विश्वविद्यालय से संबद्ध जवाहर लाल नेहरू महाविद्यालय बाँदा के हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं रीडर डॉ रामगोपाल गुप्त। विशिष्ट अतिथि के रूप बाँदा बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष कामरेड रणवीर सिंह चौहान एडवोकेट। अध्यक्षता वरिष्ठ कवि जवाहर लाल जलज कर रहे थे।
दूसरे सत्र में सम्मानित कवियों ने कविता पाठ किया। इनके साथ बाँदा जनपद व जनपद के सुदूरवर्ती क्षेत्रों से आये हुए कवियों ने भी अपनी कविताएँ सुनाईं। सत्र की अध्यक्षता प्रो रामगोपाल गुप्त जी ने की तथा संचालन किया कवि दीन दयाल सोनी ने। एक दर्जन से अधिक कवियों ने अपने काव्यपाठ से वातावरण को रसमय बना दिया। इस सत्र में ही बाँदा जनपद के वरिष्ठ कवि एवं जनवादी लेखक मंच के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रामऔतार साहू जी के काव्य संग्रह ” फूल पत्थर तोड़ते हैं” का विमोचन भी किया गया।
इस अवसर पर फतेहपुर से आए कवि/ आलोचक प्रेम नंदन, राजकीय महिला महाविद्यालय की प्रोफेसर डाॅ सबीहा रहमानी, दिल्ली से आए वरिष्ठ पत्रकार मुकुंद, कवि एवं कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता और एक्टिविस्ट डाॅ रामचंद्र सरस, कम्युनिस्ट आंदोलन को धारदार बनाने वाले समाजवादी चिंतक, विचारक तथा एक्टिविस्ट साहित्य प्रेमी और डीसीडीएफ जैसी बड़ी सहकारी संस्था के अध्यक्ष रहे साथी सुधीर सिंह, बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष रणवीर सिंह चौहान एवं अशोक त्रिपाठी जीतू तथा आनंद सिन्हा को अंग वस्त्र और माल्यार्पण से सम्मानित किया। इन्होनें समारोह में अपने विचार भी व्यक्त किए।
कार्यक्रम के तृतीय सत्र में बाँदा कचहरी परिसर में बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक त्रिपाठी जीतू जी के सौजन्य से स्थापित बाबू केदारनाथ अग्रवाल की प्रतिमा पर माल्यापर्ण किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता अशोक त्रिपाठी जीतू ने की। संचालन प्रज्ञा रावत के सुपुत्र मल्लहार ने की।
कार्यक्रम के चतुर्थ समापन सत्र के अवसर पर जनकवि केदारनाथ अग्रवाल की प्रिय नदी केन के तट पर कवि गोष्ठी संपन्न हुई। इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि नवनीत पाण्डे ने की। इस अवसर पर तमाम कवियों एवं साहित्य प्रेमियों सहित राजीव गाँधी डीएवी महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ रामभरत सिंह तोमर की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी करने वालों में
नगर पालिका परिषद बाँदा के पूर्व अध्यक्ष संजय गुप्ता, प्रो० बीडी प्रजापति, डॉ० रामचन्द्र सरस जिलाध्यक्ष भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी बाँदा, जनवादी लेखक मंच के सचिव प्रद्युम्न कुमार सिंह, कोषाध्यक्ष नारायन दास गुप्ता, जनवादी लेखक मंच के मीडिया प्रभारी कालीचरण सिंह, डॉ0 शिव प्रकाश सिंह, डॉ० सबीहा रहमानी (हंगामा), ठाकुर दास पंक्षी, चन्द्र प्रकाश व्यथित, मनोज कुमार मृदुल, संजय लश्करी, निखिल बुन्देली, मदन सिंह, पवन सिंह पटेल, मुकुन्द जी, राम औतार साहू, मूलचन्द्र कुशवाहा, अर्जुन सिंह चाँद तथा बाँदा के साहित्य जगत से जुड़े कवि-लेखक प्रमुख थे। सभी रचनाकारों और श्रोताओं ने अपनी-अपनी रचनाओं और भावनाओं से जनकवि केदारनाथ अग्रवाल जी के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला।
इस कार्यक्रम की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि जनकवि केदारनाथ के प्रथम कवि शिष्य स्मृतिशेष कृष्ण मुरारी पहारिया की 75 कविताओं की विलुप्त पांडुलिपि का मिलना। इसका एकमात्र श्रेय दिल्ली के पत्रकार मुकुन्द को है कि उन्होंने इसे दिल्ली में खोज निकाला और उपलब्ध कराया। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि पहारिया जी के जीते जी उनका एकमात्र कविता संग्रह वरिष्ठ पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट भाई अनिल शर्मा ने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से प्रकाशित कराया था। उस कविता संग्रह की अनुगूंज आज तक विद्यमान है।
कार्यक्रम के संयोजक एवं “मुक्तिचक्र” पत्रिका के संपादक गोपाल गोयल ने एक सुखद जानकारी यह दी कि कृष्ण मुरारी पहरिया की इन पिचहत्तर कविताओ के कविता-संग्रह का विमोचन वर्ष 2025 में “मुक्तिचक्र जनकवि केदारनाथ अग्रवाल स्मृति सम्मान के अवसर पर किया जायेगा। पहारिया जी की हस्तलिखित पांडुलिपि दिल्ली से आये पत्रकार मुकुन्द जी ने उपलब्ध करा ही दी है।
इसी क्रम में संपादक गोपाल गोयल और आलोचक उमाशंकर सिंह परमार ने घोषणा की है कि सम्मानित किए गये दोनों कवियों पर एक एक आलोचनात्मक पुस्तक इस वर्ष के अंत तक या विश्व पुस्तक मेला के समय तक प्रकाशित होकर अवश्य आ जाएगी।
अंत में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि जवाहर लाल जलज के अध्यक्षीय उद्बोधन के बाद “मुक्तिचक्र” पत्रिका सम्पादक एवं जनवादी लेखक मंच के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गोपाल गोयल ने आज सम्मानित किए गए कवियों सहित जिले के सुदूरवर्ती क्षेत्रों से आये हुए साहित्यकारों तथा विद्वतजनों का आभार प्रकट किया।
●● सम्मान समारोह के दूसरे दिन 23 जून को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रगतिशील किसान के गाँव बड़ोखर में समसामयिक सामाजिक, साहित्यिक / सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा आर्थिक परिस्थितियों पर गंभीर चिंतन और विचा विमर्श हुआ और कविता पाठ हुआ। जिसकी अध्यक्षता प्रेम सिंह ने की। संचालन उमाशंकर सिंह परमार ने किया। यह कविता पाठ व चर्चा पूरी तरह से प्रकृति एवं पर्यावरण के संरक्षण को समर्पित रही। इसके साथ भारतीय संस्कृति के पहलुओं तथा खेत-किसान के साथ साथ गाँव की परम्पराओं पर विस्तार से चर्चा हुई। इस तरह भीषण गर्मी के बावजूद बाँदा में दो दिन साहित्य समाज जुटा और केदारनाथ अग्रवाल को याद करते हुए उनकी प्रगतिशील व संघर्षशील परंपरा को आगे बढ़ाने के अपने संकल्प को दोहराया।