विश्व किडनी दिवस 2024: जाने किडनी के बारे में कुछ ज़रूरी बातें
डॉ शैलेश चंद्र सहाय, निर्देशक – यूरोलॉजी, मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, पटपड़गंज
(सामाजिक चिन्तक) किडनी ट्रांसप्लांट एक सर्जरी होती है जिसमें शरीर के अंदर मौजूद खराब किडनी को निकालकर उसकी जगह डोनर से ली गई स्वस्थ किडनी लगाई जाती है। ये किडनी किसी मृत व्यक्ति या किसी जीवित दोनों तरह के डोनर से ली जा सकती है। परिवार का कोई सदस्य या अन्य कोई, जिसका मैच मिल जाए वो अपनी एक किडनी डोनेट कर सकता है। इस तरह का ट्रांसप्लांट लिविंग ट्रांसप्लांट कहलाता है। किडनी ट्रांसप्लांटेशन के बाद आमतौर पर मरीज के लिए रिजल्ट अच्छे आते हैं, 1 साल के सर्वाइवल रेट 93 से 98 फीसदी होते हैं और 5 साल का सर्वाइवल रेट 83 से 93 फीसदी रहता है।
ट्रांसप्लांट के प्रकार
1. *लिविंग डोनर:* वो व्यक्ति जो ट्रांसप्लांटेशन के लिएअंग डोनेट करता है वो लिविंग डोनर कहलाता है।
2. *मृत डोनर*: ब्रेन या दिल की बीमारी से मौत के बाद जिस व्यक्ति से कम से कम एक सॉलिड अंग ट्रांसप्लांटेशन के लिए लिया जाता है, वो डिसीज्ड डोनर या मृत डोनर कहलाता है।
3. *एक्सपेंडेड क्राइटेरिया डोनर (ईसीडी)*: वो मृत डोनर जिसकी उम्र 60 से ज्यादा होती है, वो ईसीडी कैटेगरी में आता है।
किडनी ट्रांसप्लांट क्यों किया जाता है?
क्रोनिक किडनी डिजीज या एंड स्टेज किडनी डिजीज यानी किडनी फेल्योर से जूझ रहे मरीजों को ठीक करने के मकसद से किडनी ट्रांसप्लांट किया जाता है. जब व्यक्ति की किडनी शरीर के वेस्ट को ठीक से फिल्टर नहीं कर पाती, तब डायलिसिस यानी मशीन के जरिए खून की सफाई या किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है।
किडनी ट्रांसप्लांट में क्या जरूरत होती है?
किडनी ट्रांसप्लांट के मामले में हर हॉस्पिटल का मरीज के हिसाब से अपना क्राइटेरिया होता है. लेकिन आमतौर पर उस मरीज का किडनी ट्रांसप्लांट किया जाता है, जिसकी बीमारी एंड स्टेज में हो और वो डायलिसिस पर चल रहा हो. लेट स्टेज क्रोनिक किडनी डिजीज हो और डायलिसिस का विकल्प तलाश रहा हो. मरीज के जीने की संभावना कम से कम पांच साल हो और मरीज को ट्रांसप्लांटेशन के बाद के सभी निर्देशों व केयर की जानकारी हो।
कौन से मरीज किडनी ट्रांसप्लांट के लिए योग्य नहीं होते?
किडनी ट्रांसप्लांट हर मरीज के हिसाब से प्लान किया जाता है. फिर भी कुछ ऐसी चीजें हैं जिनके होने पर किडनी ट्रांसप्लांट को टाल दिया जाता है।
अगर किसी मरीज की हालत गंभीर हो और सर्जरी उसके लिए खतरनाक साबित होने का खतरा हो तो किडनी ट्रांसप्लांट नहीं किया जाता।
अगर मरीज को बार-बार इंफेक्शन होता हो।
मरीज नशा करता हो, शराब पीता हो।
मरीज की हालत चाहे जैसी हो, डॉक्टर तभी किडनी ट्रांसप्लांट का विकल्प चुनते हैं जब उन्हें ये सुरक्षित नजर आता है।
मरीज की पुरानी किडनी का क्या होता है?
ज्यादातर मामलों में सर्जन मरीज की क्षतिग्रस्त किडनी को शरीर के अंदर ही छोड़ देते हैं. हालांकि, कुछ कंडीशन ऐसी होती हैं जिनमें किडनी को शरीर से बाहर निकालना पड़ता है.
-अगर पुरानी किडनी से नई किडनी में इंफेक्शन फैलने का डर हो तो पुरानी को शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है
-पुरानी किडनी के कारण ब्लड प्रेशर हाई हो रहा हो या कंट्रोल न हो पा रहा हो
अगर किडनी में पेशाब जमा हो गया हो
किडनी ट्रांसप्लांट कितने दिन काम करता है?
किडनी ट्रांसप्लांटेशन के बाद मरीज कितने वक्त तक सही रहता है, ये सबके मामले में अलग है. आमतौर पर मृत डोनर की तुलना में लिविंग डोनर की किडनी ज्यादा चलती है. औसतन, किडनी ट्रांसप्लांटेशन 10 साल तक काम करता है।
किडनी ट्रांसप्लांट के फायदे?
सफल किडनी ट्रांसप्लांट होने के कई फायदे होते हैं. इससे शरीर की ताकत बढ़ती है, स्टेमिना और एनर्जी बढ़ती है. ट्रांसप्लांटेशन के बाद व्यक्ति नॉर्मल लाइफ गुजारने में सक्षम रहता है, अपनी मर्जी के मुताबिक वो कुछ भी खा या पी सकता है।
अगर किसी मरीज का ट्रांसप्लांटेशन से पहले डायलिसिस चल रहा हो तो उनके लिए और आसानी होती है क्योंकि फिर उन्हें डायलिसिस के लिए बाउंड नहीं होना पड़ता.
किडनी फेल होने की स्थिति में एनीमिया की समस्या हो जाती है, ट्रांसप्लांटेशन के बाद इसके ठीक होने की संभावना रहती है. अगर आपको हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर) है, तो ट्रांसप्लांटेशन के बाद ब्लड प्रेशर की कम दवाओं से ही काम चल जाता है।
किडनी ट्रांसप्लांट के बाद रिकवरी में कितना समय लगता है?
किडनी ट्रांसप्लांट कराने पर औसतन रिकवरी में लगभग छह सप्ताह लगते हैं. हालांकि, यह पीरियड सभी मरीजों के लिए अलग-अलग होता है. रिकवरी मरीज की हेल्थ समेत अन्य कई कारकों पर निर्भर करती है।